Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ज्ञाताधर्मकथा निकली। उस समयं नन्दा पुष्करिणी में बहुत से जन नहाते, पानी पीते और पानी ले जाते हुए आपस में इस प्रकार बातें करने लगे - श्रमण भगवान् महावीर यहीं गुणशील उद्यान में समवसृत हुए हैं। सो हे देवानुप्रिय ! हम चलें और श्रमण भगवान् महावीर की वन्दना करें, यावत् (नमस्कार करें, उनका सत्कार-सम्मान करें, कल्याण मंगल देव एवं चैत्य स्वरूप भगवान् की ) उपासना करें। यह हमारे लिए इहभव में और परभव में हित के लिए एवं सुख के लिए होगा, क्षमा और निःश्रेयस के लिए तथा अनुगामीपन के लिए होगा- प में यही साथ जायगा ।
- परभव
मेंढ़क का वन्दनार्थ प्रस्थान
३० - तए णं तस्स ददुरस्स बहूजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जेत्था - ' एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छामि णं वंदामि' जाव' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता णंदाओ पुक्खरिणीओ सणियं सणियं उत्तरइ, उत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ताए उक्किट्ठाए ददुरगईए वीईवयमाणे वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।
बहुत जनों से यह वृत्तान्त सुन कर और हृदय में धारण करके उस मेंढ़क को ऐसा विचार, चिन्तन, अभिलाषा एवं मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ - निश्चय ही श्रमण भगवान् महावीर यहाँ पधारे हैं, तो मैं जाऊँ और भगवान् की वन्दना करूँ । उसने ऐसा विचार किया । विचार करके वह धीरे-धीरे नन्दा पुष्करिणी से बाहर निकला । निकल कर जहाँ राजमार्ग था, वहां आया। आकर उत्कृष्ट दर्दुरगति से अर्थात् मेंढ़क के योग्य तीव्र चाल से चलता हुआ मेरे पास आने के लिए कृतसंकल्प हुआ - रवाना हुआ।
मेंढ़क का कुचलना
३१ - इमं च णं सेणिए राया भंभसारे पहाए कायकोउय जाव सव्वालंकारविभूसए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उद्धव्वमाणेहिं महया हयगयरहभडचडगरकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ । तणं से ददुरे सेणियस्स रण्णो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अक्कंते समाणे अंतनिग्घाइए क यावि होत्था ।
इधर भंभसार अपरनामा श्रेणिक राजा ने स्नान किया एवं कौतुक -मंगल-प्रायश्चित किया । यावत् वह सब अलंकारों से विभूषित हुआ और श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुआ। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र से, श्वेत चामरों से शोभित होता हुआ, अश्व, हाथी, रथ और बड़े-बड़े सुभटों के समूह रूप चतुरंगिणी सेना से परिवृत्त होकर मेरे चरणों की वन्दना करने के लिए शीघ्रतापूर्वक आ रहा था । तब वह मेंढ़क श्रेणिक राजा के एक अश्वकिशोर (नौजवान घोड़े ) के बाएँ पैर से कुचल गया। उसको आँतें बाहर निकल गईं । महाव्रतों का स्वीकार
३२–तए णं से ददुरे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्गहियं तिक्खुत्तो सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी
१. अ. १३, सूत्र २९