Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवाँ अध्ययन : दर्दुरज्ञात ]
[ ३४३
तब नंद मणिकार बहुत-से लोगों से यह अर्थ (अपनी प्रशंसा की बातें सुनकर हृष्ट-तुष्ट हुआ। मेघ की धारा से आहत कदम्बवृक्ष के समान उसके रोमकूप विकसित हो गये-उसकी कली-कली खिल उठी। वह साताजनित परम सुख का अनुभव करने लगा।
नंद की रुग्णता
२१ - तए णं तस्स नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स अन्नया कयाई सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तंजहा
सासे कासे जारे दाहे, कुच्छिसूले भगंदरे ।
अरिसा अजीरए दिट्ठि – मुद्धसूले अगारए' ॥ १॥
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अच्छिवेयणा कन्नवेयणा कंडू दउदरे कोढे ।
तए णं से गंदे मणियारसेट्ठी सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव' महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं वयह - ' एवं खलु देवाणुप्पिया ! णंदस्स मणियारसेट्ठिस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तंजहा - सासे य जाव कोढे । तं जो इच्छइ देवाणुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुअपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसिं व सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामेत्तए, तस्स णं देवाणुप्पिया! नंदे मणियारे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कट्टु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेह । घोसित्ता जाव [ एयमाणत्तियं ] पच्चप्पिणह ।' ते वि तहेव पच्चप्पिणंति ।
कुछ समय के पश्चात् एक बार नंद मणिकार सेठ के शरीर में सोलह रोगातंक अर्थात् ज्वर आदि रोग और शूल आदि आतंक उत्पन्न हुए। वे इस प्रकार थे - (१) श्वास (२) कास- खांसी (३) ज्वर (४) दाहजलन (५) कुक्षि - शूल -कूंख का शूल (६) भगंदर (७) अर्श - बवासीर (८) अजीर्ण (९) नेत्रशूल (१०) मस्तकशूल (११) भोजनविषयक अरुचि (१२) नेत्रवेदना (१३) कर्णवेदना (१४) कंडू - खाज (१५) दकोदर-जलोदर और (१६) कोढ़ ।
नंद मणिकार इन सोलह रोगातंकों से पीड़ित हुआ । तब उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा देवानुप्रियो ! तुम जाओ और राजगृह नगर में शृंगाटक यावत् छोटे-मोटे मार्गों में अर्थात् गली-गली में ऊँची आवाज से घोषणा करते हुए कहो - 'हे देवानुप्रियो ! नंद मणिकार श्रेष्ठी के शरीर में सोलह रोगातंक उत्पन्न हुए हैं, यथा-श्वास से कोढ़ तक। तो हे देवानुप्रियो ! जो कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, जानकार या जानकार का पुत्र, कुशल या कुशल का पुत्र, नंद मणिकार के उन सोलह रोगातंकों में से एक भी रोगातंक को उपशान्त करना चाहे - मिटा देगा, देवानुप्रियो ! नंद मणिकार उसे विपुल धन-सम्पत्ति प्रदान करेगा। इस प्रकार दूसरी बार और तीसरी बार घोषणा करो। घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार कार्य करके अर्थात् राजगृह की गली-गली में घोषणा करके आज्ञा वापिस सौंपी।
१. पाठान्तर - ' अकारए'
२. प्र. अ. ७७