Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ज्ञाताधर्मकथा
९ - एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथी वा निग्गंथी वा पव्वइए समाणे बहूणं उत्थियाणं, बहूणं निहत्थाणं सम्मं सहइ, बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं नो सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते ।
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इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! जो हमारा साधु अथवा साध्वी दीक्षित होकर बहुत-से अन्यतीर्थिकों और बहुत-से गृहस्थों के दुर्वचन सम्यक् प्रकार सहन करता है और बहुत-से साधुओं, बहुत-सी साध्वियों, बहुत से श्रावकों तथा बहुत-सी श्राविकाओं के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता, उस पुरुष को मैंने देशाराधक कहा है।
सर्वविराधक
१० - समणाउसो ! जया णं नो दीविच्चगा णो सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव महावाया वायंति, तए णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा झोडा जाव मिलायमाणा मिलायमाणा चिट्ठेति । आयुष्मन् श्रमणो ! जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी एक भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् महावात नहीं बहती, तब सब दावद्रव वृक्ष जीर्ण सरीखे हो जाते हैं, यावत् मुरझाए रहते हैं । ११ - एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे सव्वविराह पण्णत्ते ।
इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! जो हमारा साधु या साध्वी यावत् प्रव्रजित होकर बहुत-से साधुओं, बहुत-सी साध्वियों, बहुत-से श्रावकों, बहुत-से श्राविकाओं, बहुत-से अन्यतीर्थिकों एवं बहुत-से गृहस्थों के दुर्वचन शब्दों को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता, उस पुरुष को मैंने सर्वविराधक कहा है।
सर्वाराधक
१२ - समणाउसो ! जया णं दीविच्चगा वि सामुद्दगा वि ईसिं पुरेवाया पच्छावाया जाव वायंति, तदा णं सव्वे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति ।
जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् बहती है, तब सभी दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित, फलित यावत् सुशोभित रहते हैं ।
१३ – एवामेव समणाउसो ! जे अम्हं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहू सावया बहूणं सावियाणं बहूणं अन्नउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्मं सहइ, एस णं मए पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते समणाउसो ! एवं खलु गोयमा ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवति । आयुष्मन् श्रमणो ! इसी प्रकार जो हमारा साधु या साध्वी बहुत-से श्रमणों के, बहुत-सी श्रमणियों के, बहुत-से श्रावकों के, बहुत-सी श्राविकाओं के, बहुत-से अन्यतीर्थिकों के और बहुत-से गृहस्थों