Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
[१०१
तत्पश्चात् वह मेघ अनगार श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों के सन्निकट सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, लगभग बारह वर्ष तक चारित्र पर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना के द्वारा आत्मा (अपने शरीर) को क्षीण करके, अनशन से साठ भक्त छेद कर अर्थात् तीस दिन उपवास करके, आलोचना प्रतिक्रमण करके, माया, मिथ्यात्व और निदान शल्यों को हटाकर समाधि को प्राप्त होकर अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुए।
२११-तए णं थेरा भगवन्तो मेहं अणगारं आणुपुव्वेणं कालगयं पासेन्ति। पासित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करित्ता मेहस्स आयारभंडयं गेण्हंति।गेण्हित्ता विउलाओ पव्वयाओ सणियं सणियं पच्चोरुहंति। पच्चोरुहित्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
तत्पश्चात् मेघ अनगार के साथ गये हुए स्थविर भगवंतों ने मेघ अनगार को क्रमशः कालगत देखा। देखकर परिनिर्वाणनिमित्तक (मुनि के मृत देह को परठने के कारण से किया जाने वाला) कायोत्सर्ग किया। कायोत्सर्ग करके मेघ मुनि के उपकरण ग्रहण किये और विपुल पर्वत से धीरे -धीरे नीचे उतरे। उतर कर जहाँ गुणशील चैत्य था और जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे वहीं पहुँचे। पहुँच कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोले
२१२-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे अणगारे पगइभद्दए जाव(पगइउवसंते पगइपतणुकोह-माण-माया-लोहे मिउमद्दवसंपण्णे अल्लीणे)विणीए।सेणं देवाणुप्पिएहिं अब्भणुनाए समाणे गोयमाइए समणे निग्गंथे निग्गंथीओ यखामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहइ। दुरूहित्ता सयमेव मेघघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ। पडिलेहित्ता भत्तपाणपडियाइक्खित आणुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवाणुप्पिया! मेहस्स अणगारस्स आयारभंडए।
आप देवानुप्रिय के अन्तेवासी (शिष्य) मेघ अनगार स्वभाव से भद्र और यावत् [स्वभावतः उपशान्त, स्वभावतः मंद क्रोध, मान, लोभ वाले, अतिशय मृदु, संयमलीन एवं] विनीत थे। वह देवानुप्रिय (आप) से अनुमति लेकर गौतम आदि साधुओं और साध्वियों को खमा कर हमारे साथ विपुल पर्वत पर धीरेधीरे आरूढ हुए। आरूढ होकर स्वयं ही सघन मेघ के समान कृष्णवर्ण पृथ्वीशिलापट्टक का प्रतिलेखन किया। प्रतिलेखन करके भक्त-पान का प्रत्याख्यान कर दिया और अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुए। हे देवानुप्रिय! यह हैं मेघ अनगार के उपकरण। पुनर्जन्म निरूपण
२१३-भंते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–‘एवं खलु देवाणुप्पियाणं अन्तेवासी मेहे णामं अणगारे, सेणं मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने ?'