Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन : कूर्म]
[१४७ शास्त्रकार कहते हैं-जो साधु या साध्वी अनगार-दीक्षा अंगीकार करके अपनी इन्द्रियों का गोपन नहीं करते उनकी दशा प्रथम कूर्म जैसी होती है। वे इह-परभव में अनेक प्रकार के कष्ट पाते हैं, संयम-जीवन से च्युत हो जाते हैं और निन्दा-गर्दा के पात्र बनते हैं। इससे विपरीत, जो साधु या साध्वी इन्द्रियों का गोपन करते हैं, वे इसी भव में सब के वन्दनीय, पूजनीय, अर्चनीय होते हैं और संसार-अटवी को पार करके सिद्धिलाभ करते हैं।
तात्पर्य यह है कि साधु हो अथवा साध्वी, उसे अपनी सभी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए, उसका गोपन करना चाहिए। इन्द्रिय-गोपन का अर्थ है-इन्द्रियों को अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त न होने देना। किन्तु सर्वत्र सर्वदा इन्द्रियों की प्रवृत्ति रोकना संभव नहीं है। सामने आई वस्तु इच्छा न होने पर भी दृष्टिगोचर हो ही जाती है, बोला हुआ शब्द श्रोत्र का विषय बन ही जाता है। साधु-साध्वी अपनी इन्द्रियों को बन्द करके रख नहीं सकते। ऐसी स्थिति में इन्द्रिय द्वारा गृहीत विषय में राग-द्वेष न उत्पन्न होने देना ही इन्द्रियगोपन, इन्द्रियदमन अथवा इन्द्रियसंयम कहलाता है। इस साधना के लिए मन को समभाव का अभ्यासी बनाने का सदैव प्रयास करते रहना आवश्यक है।
यही इस अध्ययन का सार-संक्षेप है।