Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा विदेहरायवरकन्नं णो आढाइ, नो परियाणाइ, तुसिणीए संचिट्ठइ।
इधर विदेहराजवरकन्या मल्ली ने स्नान किया, (वस्त्राभूषण धारण किये) यावत् बहुत-सी कुब्जा आदि दासियों से परिवृत होकर जहाँ कुंभ राजा था, वहाँ आई। आकर उसने कुंभ राजा के चरण ग्रहण कियेपैर छुए। तब कुंभ राजा ने विदेहराजवरकन्या मल्ली का आदर (स्वागत) नहीं किया, अत्यन्त गहरी चिन्ता में व्यग्र होने के कारण उसे उसका आना भी मालूम नहीं हुआ, अतएव वह मौन ही रहा।
१३५ --तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभयं रायं एवं वयासी-'तुब्भे णं ताओ! अण्णया ममं एजाणं जाव' निवेसेह, किं णं तुब्भ अज ओहयमणसंकप्पे जाव' झियायह?'
तए णं कुंभए राया मल्लि विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी–‘एवं खलु पुत्ता! तव कज्जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं या संपेसिया, ते णं मए असक्कारिया जाव' णिच्छूढा। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा तेसिं दुयाणं अंतिए एयमढे सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणिं निस्संचारं जाव चिट्ठन्ति। तए णं अहं पुत्ता! तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि अलभमाणे जाव' झियामि।'
तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने राजा कुंभ से इस प्रकार कहा-'हे तात! दूसरे समय मुझे आती देखकर आप यावत् मेरा आदर करते थे, प्रसन्न होते थे, गोद में बिठलाते थे, परन्तु क्या कारण है कि आज आप अवहत मानसिक संकल्प वाले होकर चिन्ता कर रहे हैं ?'
तब राजा कुंभ ने विदेहराजवरकन्या मल्ली से इस प्रकार कहा-'हे पुत्री! इस प्रकार तुम्हारे लिए-तुम्हारी मँगनी करने के लिए जितशत्रु प्रभृति छह राजाओं ने दूत भेजे थे। मैंने उन दूतों को अपमानित करके यावत् निकलवा दिया। तब वे जितशत्रु वगैरह राजा उन दूतों से यह वृत्तान्त सुनकर कुपित हो गये। उन्होंने मिथिला राजधानी को गमनागमनहीन बना दिया है, यावत् चारों ओर घेरा डालकर बैठे हैं। अतएव हे पुत्री ! मैं उन जितशत्रु प्रभृति नरेशों के अन्तर-छिद्र आदि न पाता हुआ यावत् चिन्ता में डूबा हूँ।' चिन्तानिवारण का उपाय
१३६-तएणं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभयं रायं एवं वयासी-माणं तुब्भेताओ! ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह, तुब्भेणं ताओ! तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं पत्तेयं रहसियं दूयसंपेसे करेह, एगमेगं एवं वयह-'तव देमि मल्लि विदेहरायवरकन्नं, ति कटु संझाकालसमयंसि पविरलमणूसंसि निसंतंसि पडिनिसंतंसि पत्तेयं पत्तेयं मिहिलं रायहाणिं अणुप्पवेसेह। अणुप्पवेसित्ता गब्भघरएसु अणुप्पवेसेह, मिहिलाए रायहाणीए दुवाराई पिधेह, पिधित्ता रोहसज्जे चिट्ठह।।
तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने राजा कुम्भ से इस प्रकार कहा-तात! आप अवहत मानसिक संकल्प वाले होकर चिन्ता न कीजिए। हे तात! आप उन जितशत्रु आदि छहों राजाओं में से प्रत्येक के पास गुप्त रूप से दूत भेज दीजिए और प्रत्येक को यह कहला दीजिए कि 'मैं विदेहराजवरकन्या तुम्हें देता १-२. प्रथम अ. ६० ३. अष्टम अ. १२५ ४-५. अष्टम अ. १३३