Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
[२७५ राजधानी में पानी सींच दिया; उसे साफ कर दिया और भीतर तथा बाहर की विधि करके यावत् चारों ओर दौड़धूप करने लगे। (यह सर्व वर्णन राजप्रश्नीय आदि सूत्रों से जान लेना चाहिए।)
१८०-तएणंमल्ली अरहा जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता आभरणालंकारं ओमुयइ। तए णं पभावती हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ।
तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जहाँ सहस्राम्रवन नामक उद्यान था और जहाँ श्रेष्ठ अशोकवृक्ष था, वहाँ आये। आकर शिविका से नीचे उतरे। नीचे उतरकर समस्त आभरणों का त्याग किया। प्रभावती देवी ने हंस चिह्न वाली अपनी साड़ी में वे आभरण ग्रहण किये।
__१८१-तएणं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ।तए णं सक्के देविंदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ। पडिच्छित्ता खीरोदगसमुद्दे पक्खिवइ।
तए णं मल्ली अरहा णमोऽत्थु णं सिद्धाणं' ति कटु सामाइयचरित्तं पडिवज्जइ।
तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। तब शक्र देवेन्द्र देवराज ने मल्ली के केशों को ग्रहण किया। ग्रहण करके उन केशों को क्षीरोदकसमुद्र (क्षीरसागर) में प्रक्षेप कर दिया।
. तत्पश्चात् मल्ली अरिहन्त ने 'नमोऽत्थु णं सिद्धाणं' अर्थात् 'सिद्धों को नमस्कार हो' इस प्रकार कह कर सामायिक चारित्र अंगीकार किया।
__ १८२-जं समयं च णं मल्ली अरहा चरित्तं पडिवज्जइ, तं समयं च देवाणं मणुस्साण यणिग्घोसे तुरिय-णिणाय-गीत-वाइयनिग्घोसे यसक्कस्स वयणसंदेसेणं णिलुक्के यावि होत्था। जं समयं च णं मल्ली अरहा समाइयं चरित्तं पडिवन्ने तं समयं च णं मल्लिस्स अरहओ माणुसधम्माओ उत्तरिए मणपज्जवनाणे समुप्पन्ने।
जिस समय अरहंत मल्ली ने चारित्र अंगीकार किया, उस समय देवों और मनुष्यों के निर्घोष (शब्द-कोलाहल), वाद्यों की ध्वनि और गाने-बजाने का शब्द शक्रेन्द्र के आदेश से बिल्कुल बन्द हो गया। अर्थात् शक्रेन्द्र ने सब को शान्त रहने का आदेश दिया, अतएव चारित्रग्रहण करते समय पूर्ण नीरवता व्याप्त हो गई। जिस समय मल्ली अरहन्त ने सामायिक चारित्र अंगीकार किया, उसी समय मल्ली अरहंत को मनुष्यधर्म से ऊपर का अर्थात् साधारण अव्रती मनुष्यों को न होने वाला लोकोत्तर अथवा मनुष्यक्षेत्र सम्बन्धी उत्तम मनः पर्ययज्ञान (मनुष्य क्षेत्र-अढ़ाई द्वीप में स्थित संज्ञी जीवों के मन के.पर्यायों को साक्षात् जानने वाला ज्ञान) उत्पन्न हो गया।
१८३-मल्ली णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे, तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्खे णं पुव्वण्हकालसमयंसि अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं, अस्सिणीहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहिं इत्थीसएहिं अभितरियाए परिसाए, तिहिं पुरिससएहिं बाहिरियाए परिसाए सद्धिं मुण्डे भवित्ता पव्वइए।
मल्ली अरहन्त ने हेमन्त ऋतु के दूसरे मास में, चौथे पखवाड़े में अर्थात् पौष मास के शुद्ध (शुक्ल) पक्ष में और पौष मास के शुद्ध पक्ष की एकादशी के पक्ष में अर्थात् अर्द्ध भाग में (रात्रि का भाग छोड़कर दिन