Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा
१४-तए णं ते मागंदियदारगा तेणं फलयखंडेणं उवुज्झमाणा उवुज्झमाणा रयणदीवंतेणं संवूढा यावि होत्था।
___ तत्पश्चात् वे दोनों माकन्दीपुत्र (जिनपालित और जिनरक्षित) पटिया के सहारे तिरते-तिरते रत्नद्वीप के समीप आ पहुँचे।
१५-तए णं ते मागंदियदारगा थाहं लभंत्ति, लभित्ता मुहत्तंतरं आससंति, आससित्ता फलगखंडं विसज्जेंति, विसज्जित्ता रयणद्दीवं उत्तरंति, उत्तरित्ता फलाणं मग्गणगवेसणं करेंति, करित्ता फलाइंगेण्हंति, गेण्हित्ता आहारेंति, आहारित्ता णालिएराणं मग्गणगवेसणं करेंति, करित्ता नालिएराइंफोडेंति, फोडित्ता नालिएरतेल्लेणंअण्णमण्णस्स गत्ताइं अब्भंगंति, अब्भंगित्ता पोक्खरणीओ ओगाहिंति, ओगाहित्ता जलमजणं करेंति, करित्ता जाव पच्चुत्तरंति, पच्चुत्तरित्ता पुढविसिलापट्टयंसि निसीयंति, निसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया चंपानयरिं अम्मापिउआपुच्छणं च लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवायसमुत्थणं च पोयवहणविवत्तिं च फलयखंडस्स आसायणं च रयणदीवुत्तारं च अणुचिंतेमाणा अणुचिंतेमाणा ओहयमणसंकप्या जाव (करतलपल्हथमुहा अट्टज्झाणोवगया) झियाएंति।
तत्पश्चात् उन माकन्दीपुत्रों को थाह मिली। थाह पाकर उन्होंने घड़ी भर विश्राम किया। विश्राम करके पटिया के टुकड़े को छोड़ दिया। छोड़कर रत्नद्वीप में उतरे। उतरकर फलों की मार्गणा-गवेषणा (खोजढूँढ) की फिर फलों को ग्रहण किया। ग्रहण करके फल खाये। फिर उनके तेल से दोनों ने आपस में मालिश की। मालिश करके बावड़ी में प्रवेश किया। प्रवेश करके स्नान किया। स्नान करके बावड़ी से बाहर निकले। पृथ्वीशिला रूपी पाट पर बैठे। बैठकर शान्त हुए, विश्राम लिया और श्रेष्ठ सुखासन पर आसन हुए। वहाँ बैठेबैठे चम्पा नगरी, माता-पिता से आज्ञा लेना, लवण-समुद्र में उतरना, तूफानी वायु का उत्पन्न होना, नौका का भग्न होकर डूब जाना, पटिया का टुकड़ा मिल जाना और अन्त में रत्नद्वीप में आना, इन सब बातों का बारबार विचार करते हुए भग्नमन:संकल्प होकर हथेली पर मुख रखकर आर्तध्यान में-चिन्ता में डूब गये।
१६-तए णं सा रयणद्दीवदेवया ते मागंदियदारए ओहिणा आभोएइ, आभोइत्ता असिफलग-वग्ग-हत्था सत्तट्ठतालप्यमाणं उड्ढं वेहासं उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्विट्ठाए जाव देवगईए वीइवयमाणी वीइवयमाणी जेणेव मागंदियदारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरुत्ता मागंदियदारए खर-फरुस-निठुरवयणेहिं एवं वयासी
तत्पश्चात् उस रत्नद्वीप की देवी ने उन माकन्दीपुत्रों को अवधिज्ञान से देखा। देखकर उसने हाथ में ढाल और तलवार ली। सात-आठ ताड़ जितनी ऊँचाई पर आकाश में उड़ी। उत्कृष्ट (तीव्रतम) यावत् देवगति से चलती-चलती जहाँ माकन्दीपुत्र थे, वहाँ आई। आकर एकदम कुपित हुई और माकन्दीपुत्रों को तीखे, कठोर और निष्ठुर वचनों से इस प्रकार कहने लगीदेवी द्वारा धमकी
१७–'हं भो मागंदियदारगा! अप्पत्थियपत्थिया! जइ णं तुब्भे मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरह, तो भे अस्थि जीवियं, अहण्णं तुब्भे मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई