Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
नवम अध्ययन : माकन्दी]
[२९७ ___ तब माकन्दीपुत्रों ने खड़े होकर और हाथ जोड़कर (मस्तक पर अंजलि घुमा कर) कहा- 'हमें तारिए, हमें पालिए।'
तब शैलक यक्ष ने माकन्दीपुत्रों से कहा-'देवानुप्रियो! तुम मेरे साथ लवणसमुद्र के बीचों-बीच गमन करोगे, तब वह पापिनी, चण्डा रुद्रा और साहसिका रत्नद्वीप की देवी तुम्हें कठोर, कोमल, अनुकूल, प्रतिकूल, शृंगारमय और मोहजनक उपसर्गों से उपसर्ग करेगी-डिगाने का प्रयत्न करेगी। हे देवानुप्रियो! अगर तुम रत्नद्वीप की देवी के उस अर्थ का आदर करोगे, उसे अंगीकार करोगे या अपेक्षा करोगे, तो मैं तुम्हें अपनी पीठ से नीचे गिरा दूंगा। और यदि तुम रत्नद्वीप की देवी के उस अर्थ का आदर न करोगे, अंगीकार न करोगे और अपेक्षा न करोगे तो मैं अपने हाथ से, रत्नद्वीप की देवी से तुम्हारा निस्तार कर दूंगा।'
४०-तएणं तेमागंदियदारया सेलगंजक्खं एवं वयासी-'जंणं देवाणुप्पिया! वइस्संति तस्स णं उववायवयणणिदेसे चिट्ठिस्सामो।'
तब माकन्दीपुत्रों ने शैलक यक्ष से कहा-'देवानुप्रिय! आप जो कहेंगे, हम उसके उपपातसेवन, वचन-आदेश और निर्देश में रहेंगे। अर्थात् हम सेवक की भाँति आपकी आज्ञा का पालन करेंगे।' छुटकारा
४१-तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, समोहणित्ता संखेजाइं जोयणाइंदंडं निस्सरइ, दोच्चं पि तच्चं पि वेउब्वियसमुग्घाएणंसमोहणइ, समोहणित्ता एगंमहं आसरूवं विउव्वइ।विउव्वित्ता ते मांगदियदारए एवं वयासी-'हं भो मागंदियदारया! आरुह णं देवाणुप्पिया! मम पिटुंसि।'
तत्पश्चात् शैलक यक्ष उत्तर-पूर्व दिशा में गया। वहाँ जाकर उसने वैक्रिय समुद्घात करके संख्यात योजन का दंड किया। दूसरी बार और तीसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात से विक्रिया की, समुद्घात करके एक बड़े अश्व के रूप की विक्रिया की और फिर माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा- 'माकन्दीपुत्रो! देवानुप्रियो! मेरी पीठ पर चढ़ जाओ।'
४२-तए णं से मागंदियदारया हट्ठतुट्ठा सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति, करित्ता सेलगस्स पिटुिं दुरूढा।
तए णं से सेलए ते मागंदियदारए पिढेि दुरूढे जाणित्ता सत्तद्वतालप्पमाणमेत्ताइं उड्ढं वेहायं उप्पयइ, उप्पइत्ता य ताए उक्किट्ठाए तुरियाए देवयाए देवगईए लवणसमुदं मझमझेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे, जेणेव भारहे वासे, जेणेव चंपानयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तब माकन्दीपुत्रों ने हर्षित और सन्तुष्ट होकर शैलक यक्ष को प्रणाम किया। प्रणाम करके वे शैलक की पीठ पर आरूढ़ हो गये।
१. पाठान्तर-पढें।