Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम अध्ययन : माकन्दी]
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के भग्न हो जाने से मेरा सब उत्तम भाण्डोपकरण डूब गया। मुझे पटिया का एक टुकड़ा मिल गया। उसी के सहारे तिरता-तिरता मैं रत्नद्वीप के समीप आ पहुँचा। उसी समय रत्नद्वीप की देवी ने मुझे अवधिज्ञान से देखा। देख कर उसने मुझे ग्रहण कर लिया-अपने कब्जे में कर लिया, वह मेरे साथ विपुल कामभोग भोगने लगी।
तत्पश्चात् रत्नद्वीप की वह देवी एक बार, किसी समय, एक छोटे-से अपराध पर अत्यन्त कुपित हो गई और उसी ने मुझे इस विपदा में पहुँचाया है। देवानुप्रियो! नहीं मालूम तुम्हारे इस शरीर को भी कौन-सी आपत्ति प्राप्त होगी?
३५-तए णं ते मागंदियदारया तस्स सुलाइयगस्स अंतिए एय॑मटुं सोच्चा णिसम्म बलियतरं भीया जाव संजातभया सुलाइययं पुरिसं एवं वयासी-'कहं णं देवाणुप्पिया! अम्हे रयणदीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थि णित्थरिजामो?'
तत्पश्चात् वे माकन्दीपुत्र शूली पर चढ़े उस पुरुष से यह अर्थ (वृत्तांत) सुनकर और हृदय में धारण करके और अधिक भयभीत हो गये। उनके मन में भय उत्पन्न हो गया। तब उन्होंने शूली पर चढ़े पुरुष से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय! हम लोग रत्नद्वीप के देवता के हाथ से-चंगुल से किस प्रकार अपने हाथ से-अपने आप निस्तार पाएँ-छुटकारा पा सकते हैं ?' अर्थात् देवी से छुटकारा पाने का क्या उपाय है? शैलक यक्ष
३६-तए णं से सूलाइयए पुरिसे ते मागंदियदारगे एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! पुरच्छिमिल्लेवणसंडे सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे सेलए नामं आसरूवधारी जक्खे परिवसइ।
तए णं से सेलए जक्खे चोद्दस-टुमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु आगयसमए पत्तसमए महया महया सद्देणं एवं वदइ-कं तारयामि? कं पालयामि?'
___ तत्पश्चात् शूली पर चढ़े पुरुष ने उन माकन्दीपुत्रों से कहा-'देवानुप्रियो! इस पूर्व दिशा के वनखण्ड में शैलक यक्ष का यक्षायतन है। उसमें अश्व का रूप धारण किये शैलक नामक यक्ष निवास करता है।
वह शैलक यक्ष चौदस, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन आगत समय और प्राप्त समय होकर अर्थात् एक नियत समय आने पर खूब ऊँचे स्वर से इस प्रकार बोलता है-'किसको तारूँ? किसको पालूँ?'
___३७-तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! पुरच्छिमिल्लं वणसंडं सेलगस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणियं करेह, करित्ता जण्णुपायवडिया पंजलिउडा विणएणं पज्जुवासमाणा चिट्ठह।
जाहे णं से सेलए जक्खे आगयसमए एवं वएज्जा-'कं तारयामि? कं पालयामि?' ताहे तुब्भेवदह–'अम्हे तारयाहि, अम्हे पालयाहि।' सेलए भेजक्खे परं रयणद्दीवदेवयाए हत्थाओ साहत्थिं णित्थारेज्जा। अण्णहा भे न याणामि इमेसिं सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ।
तो हे देवानुप्रियो! तुम लोग पूर्व दिशा के वनखण्ड में जाना और शैलक यक्ष की महान् जनों के