Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम अध्ययन : माकन्दी]
[२८७ लगे। उसी समय जल के भीतर विद्यमान एक बड़े पर्वत के शिखर के साथ टकरा कर नौका का मस्तूल और तोरण भग्न हो गया और ध्वजदंड मुड़ गया। नौका के वलय जैसे सैकड़ों टुकड़े हो गये। वह नौका कड़ाक' का शब्द करके उसी जगह नष्ट हो गई, अर्थात् डूब गई।
११-तएणं तीए णावाए भिजमाणीए बहवे पुरिसा विपुलपडियभंडमायाए अंतोजलम्मि णिमज्जा यावि होत्था। तए णं मागंदियदारगा छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहावी निउणसिप्पोवगया बहुसु पोतवह संपराएसु कयकरणालद्धविजया अमूढा अमूढहत्था एगं महं फलगखंड आसादेंति।
तत्वश्चात् उस नौका के भग्न होकर डूब जाने पर बहुत-से लोग बहुत-से रत्नों, भांडों और माल के साथ जल में डूब गये। परन्तु दोनों माकन्दीपुत्र चतुर, दक्ष, अर्थ को प्राप्त, कुशल, बुद्धिमान्, निपुण, शिल्प को प्राप्त, बहुत-से पोतवहन के युद्ध जैसे खतरनाक कार्यों में कृतार्थ, विजयी, मूढ़तारहित और फुर्तीले थे। अतएव उन्होंने एक बड़ा-सा पटिया का टुकड़ा पा लिया। रत्न-द्वीप
१२-जस्सि च णं पदेसंसि पोयवहणे विवन्ने, तंसि च णं पदेसंसि एगे महं रयणद्दीवे णामं दीवे होत्था। अणेगाइं जोअणाई आयामविक्खंभेणं, अणेगाइं जोअणाइं परिक्खेवेणं, नानादुमखंडमंडिउद्देसे सस्सिरीए पसाईए दंसणिजे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्सणं बहुमज्झदेसभाए तत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए होत्था-अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव' सस्सिरीभूयरूवे पासाईए दंसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
__ जिस प्रदेश में वह पोतवहन नष्ट हुआ था, उसी प्रदेश में उसके पास ही, एक रत्नद्वीप नामक बड़ा द्वीप था। वह अनेक योजन लम्बा-चौड़ा और अनेक योजन के घेरे वाला था। उसके प्रदेश अनेक प्रकार के वृक्षों के वनों से मंडित थे। वह द्वीप सुन्दर सुषमा वाला, प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, दर्शनीय, मनोहर और प्रतिरूप था अर्थात् दर्शकों को नए-नए रूप में दिखाई देता था।
उसी द्वीप के एकदम मध्यभाग में एक उत्तम प्रासाद था। उसकी ऊँचाई प्रकट थी-वह बहुत ऊँचा था। वह भी सश्रीक, प्रसन्नताप्रदायी, दर्शनीय, मनोहर रूप वाला और प्रतिरूप था। रत्न-द्वीप देवी
१३-तत्थ णं पासायवडेंसए रयणद्दीवदेवया नामं देवया परिवसइ पावा, चंडा, रुद्दा, खुद्दा, साहसिया।
तस्स णं पासायवडेंसयस्स चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा किण्हा, किण्होभासा।
उस उत्तम प्रासाद में रत्नद्वीपदेवता नाम की एक देवी रहती थी। वह पापिनी, चंडा-अति पापिनी, भयंकर, तुच्छ स्वभाववाली और साहसिक थी। (इस देवी के शेष विशेषण विजयचोरके समान जान लेने चाहिए)।
उस उत्तम प्रासाद की चारों दिशाओं में चार वनखंड (उद्यान) थे। वे श्याम वर्ण वाले और श्याम कान्ति वाले थे (यहाँ वनखण्ड के पूर्व वर्णित अन्य विशेषण समझ लेने चाहिए)।
१. प्रथम. अ. १०३