Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२२८]
[ज्ञाताधर्मकथा पहारेत्थ गमणाए।
तत्पश्चात् पद्मावती देवी अपने परिवार से परिवृत होकर साकेत नगर के बीच में होकर निकली। निकलकर जहाँ पुष्करिणी की थी वहाँ आई। आकर पुष्करिणी में प्रवेश किया। प्रवेश करके यावत् [जलक्रीड़ा की, स्नान किया, बलिकर्म किया और] अत्यन्त शुचि होकर गीली साड़ी पहनकर वहाँ जो कमल, (कुमुद, नलिन, सुभग, सौंगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र) आदि (विभिन्न जाति के कमल) थे, उन्हें यावत् ग्रहण किया। ग्रहण करके जहाँ नागगृह था, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया।
४५-तए णं पउमावई दासचेडीओ बहूओ पुप्फपडलगहत्थगयाओ धूवकडुच्छुग हत्थगयाओ पिट्ठओ समणुगच्छंति।
तए णं पउमावई सव्विड्डीए जेणव णागघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नागघरयं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता लोमहत्थगं जाव' धूवं डहइ, डहित्ता पडिबुद्धिं रायं पडिवालेमाणी पाडिवालेमाणी चिट्ठइ।
___ तत्पश्चात् पद्मावती देवी की बहुत-सी दास-चेटियाँ (दासियाँ) फूलों की छबड़ियाँ तथा धूप की कुड़छियां हाथ में लेकर पीछे-पीछे चलने लगीं।
___ तत्पश्चात् पद्मावती देवी सर्व ऋद्धि के साथ-पूरे ठाठ के साथ-जहाँ नागगृह था, वहाँ आई। आकर नागगृह में प्रविष्ट हुई। प्रविष्ट होकर रोमहस्त (पींछी) लेकर प्रतिमा का प्रमार्जन किया, यावत् धूप खेई। धूप खेकर प्रतिबुद्धि राजा की प्रतीक्षा करती हुई वहीं ठहरी।।
४६ - तए णं पडिबुद्धी राया ण्हाए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रह-जोह-महयाभडचडगरपहकरेहिं साकेयं नगरं मझमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छिता जेणेवणागघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता आलोए पणामं करेइ, करित्ता पुष्फमंडवं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पासइ तं एगं महं सिरिदामगंडं।
____ तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा स्नान करके श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आसीन हुआ। कोरंट के फूलों सहित अन्य पुष्पों की मालाएँ जिसमें लपेटी हुई थीं, ऐसा छत्र उसके मस्तक पर धारण किया गया। यावत् उत्तम श्वेत चामर ढोरे जाने लगे। उसके आगे-आगे विशाल घोड़े, हाथी, रथ और पैदल योद्धा-यह चतुरंगी सेना चली। सुभटों के बड़े समूह के समूह चले। वह साकेत नगर के मध्य भाग में होकर निकला। निकल कर जहाँ नागगृह था, वहाँ आया। आकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरा। उतरकर प्रतिमा पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया। प्रणाम करके पुष्प-मंडप में प्रवेश किया। प्रवेश करके वहाँ उसने एक महान् श्रीदामकाण्ड देखा।
४७–तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुदूरं कालं निरिक्खइ, निरिक्खित्ता तंसि सिरिदामगंडंसि जायविम्हए सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी
"तुमंणं देवाणुप्पिया! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर० जाव संनिवेसाइं आहिंडसि, बहूणि राईसर जाव' गिहाइं अणुपविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरिदामगंडे, दिट्ठपुव्वे, १. द्वि. अ. १५