Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२३०]
[ज्ञाताधर्मकथा
कण्णगं मम भारियत्ताए वरेही, जइ वि णं सा सयं रजसुंका।
तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि अमात्य से यह अर्थ (बात) सुनकर और हृदय में धारण करके और श्रीदामकाण्ड की बात से हर्षित (प्रमुदित-अनुरक्त) होकर दूत को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहादेवानुप्रिय! तुम मिथिला राजधानी जाओ। वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, पद्मावती देवी की आत्मजा और विदेह की प्रधान राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो। फिर भले ही उसके लिए सारा राज्य शुल्कमूल्य रूप में देना पड़े।
विवेचन-इस पाठ से आभास होता है कि प्राचीन काल में कन्या ग्रहण करने के लिए शुल्क देना पड़ता था। अन्य स्थलों में भी अनेक बार ऐसा ही पाठ आता है। यह कन्याविक्रय का ही एक रूप था जो हमारे समाज में कुछ वर्षों पूर्व तक प्रचलित था। अब पलड़ा पलट गया है और कन्याविक्रय के बदले वर-विक्रय की घृणित प्रथा चल पड़ी है। यों यह एक सामाजिक प्रथा है किन्तु धार्मिक जीवन पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। साधारण आय से भी मनुष्य अपनी उदरपूर्ति कर सकता है और तन ढंक सकता है। उसके लिए अनीति और अधर्म से अर्थोपार्जन की आवश्यकता नहीं, किन्तु वर खरीदने अर्थात् विवश होकर दहेज देने के लिए अनीति और अधर्म का आचरण करना पड़ता है। इस प्रकार इस कुप्रथा के कारण अनीति और अधर्म की समाज में वृद्धि होती है।
५१-तएणं से दूए पडिबुद्धिणा रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुटेपडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं पडिकप्पावेइ, पड़िकप्पावित्ता दुरूढे जाव हय-गय- [रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे ] महयाभडचडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजलवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
... तत्पश्चात् उस दूत ने प्रतिबुद्धि राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित और सन्तुष्ट होकर उसकी आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके जहाँ अपना घर था और जहाँ चार घंटों वाला अश्व-रथ था, वहाँ आया। आकर (आगे, पीछे और अगल-बगल में) चार घंटों वाले अश्व-रथ को तैयार कराया। तैयार करवाकर उस पर आरूढ़ हुआ। यावत् घोड़ों, हाथियों (रथों, उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ) और बहुत से सुभटों के समूह के साथ साकेत नगर से निकला। निकल कर जहाँ विदेह जनपद था और जहाँ मिथिला राजधानी थी, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया-चल दिया।
विवेचन-श्रीदामकाण्ड की चर्चा में से मल्ली कुमारी के अनुपम सौन्दर्य की बात निकली। राजा को मल्ली कुमारी के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ। इस अनुराग का तात्कालिक निमित्त श्रीदामकाण्ड हो अथवा मल्ली के सौन्दर्य का वर्णन, किन्तु मूल और अन्तरंग कारण पूर्वभव की प्रीति के संस्कार ही समझना चाहिए। मल्ली कुमारी जब महाबल के पूर्वभव में थी तब उनके छह बाल्यमित्रों में इस भव का यह प्रतिबुद्धि राजा भी एक था।
मल्ली कुमारी घटित होने वाली इन घटनाओं को पहले से ही अपने अतिशय ज्ञान से जानती थी, इसी कारण उन्होंने अपने अनुरूप प्रतिमा का निर्माण करवाया था और छहों मित्र-राजाओं को विरक्त बनाने के लिए विशिष्ट आयोजन किया था।