Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ज्ञाताधर्मकथा
उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था। वह युवराज था ।
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किसी समय एक बार मल्लदिन कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा'तुम जाओ और मेरे प्रमदवन (घर के उद्यान) में एक बड़ी चित्रसभा का निर्माण करो, जो सैकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, इत्यादि । ' यावत् उन्होंने ऐसा ही करके, चित्रसभा का निर्माण करके आज्ञा वापिस लौटा दी।
९६ – तए णं मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगरसेणिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'तुब्भे देवाप्पिया ! चित्तसभं हाव-भाव-विलास - विब्बोय - कलिएहिं रूवेहिं चित्तेह । चित्तित्ता जाव पच्चपि ह ।
तणं सा चित्तगरसेणी तह त्ति पडिसुणेड़, पडिसुणित्ता जेणेव सयाइं गिहाई, तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तूलियाओ वन्नए य गेण्हति, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अणुपविसति, अणुपविसित्ता भूभिभागे विरचति ( विहिवति), विरचित्ता (विहिवित्ता) भूमिं सज्जति, सज्जित्ता चित्तसभं हावभाव जाव चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था । तत्पश्चात् मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की श्रेणी को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा 'देवानुप्रियो ! तुम लोग चित्रसभा को हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों में (चित्रों से) चित्रित करो । चित्रित करके यावत् मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ।'
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तत्पश्चात् चित्रकारों की श्रेणी ने 'तथा - बहुत ठीक' इस प्रकार कहकर कुमार की आज्ञा शिरोधार्य की। फिर वे अपने-अपने घर गये। घर जाकर उन्होंने तूलिकाएँ लीं और रंग लिए । लेकर जहाँ चित्रसभा थी वहाँ आए। आकर चित्रसभा में प्रवेश किया। प्रवेश करके भूमि के भागों का विभाजन किया। विभाजन करके अपनी-अपनी भूमि को सज्जित किया - तैयार किया - चित्रों के योग्य बनाया । सज्जित करके चित्रसभा में हाव-भाव आदि से युक्त चित्र अंकित करने में लग गये।
विवेचन - हाव-भाव आदि साधारणतया स्त्रियों की चेष्टाओं को कहते हैं। उनका परस्पर अन्तर यह है - हा अर्थात् मुख का विकार, भाव अर्थात् चित्त का विकार, विलास अर्थात् नेत्र का विकार और बिब्बोक अर्थात् इष्ट अर्थ की प्राप्ति से अत्पन्न होने वाला अभिमान का भाव । युवराज मल्लदिन ने इन सभी शृंगार रस के भावों को चित्रित करने का आदेश दिया।
९७ - तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवे चित्तगरलद्धा लद्धा पत्ता अभिसमन्नागयाजस्सदुपयस्स वा चउपयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं तयाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं निव्वत्ते ।
उन चित्रकारों में एक चित्रकार को ऐसी चित्रकारलब्धि (असाधारण योग्यता) लब्ध थी, प्राप्त थी और बार-बार उपयोग में आ चुकी थी कि वह जिस किसी द्विपद (मनुष्यादि), चतुष्पद (गाय, अश्व आदि) और अपद (वृक्ष, भवन आदि) का एक अवयव भी देख ले तो उस अवयव के अनुसार उसका पूरा चित्र बना
सकता था।