Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पञ्चम अध्ययन : शैलक]
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का उल्लेख मूल पाठ में आया है। अन्त में शुक परिव्राजक, थावच्चापुत्र के शिष्य बन गए। शुक के भी एक हजार शिष्य थे। उन्होंने भी अपने गुरु का अनुसरण किया-वे भी साथ ही दीक्षित हो गए।
शुक अनगार एक बार किसी समय शैलकपुर पधारे। वहाँ का राजा शैलक पहले ही थावच्चापुत्र के उपदेश से श्रमणोपासक धर्म अंगीकार कर चुका था। इस बार वह अपने पांच सौ मंत्रियों के साथ दीक्षित हो गया। उसका पुत्र मंडुक राजगद्दी पर बैठा।
शैलकमुनि साधुचर्या के अनुसार देश-देशान्तरों में विचरण करने लगे। उनके गुरु शुक-मुनि तब विद्यमान नहीं थे-सिद्धिलाभ कर चुके थे। शैलक राजर्षि का सुखों में पला सुकोमल शरीर साधु-जीवन की कठोरता को सहन नहीं कर सका। शरीर में दाद-खाज हो गई, पित्तज्वर रहने लगा, जिसके कारण वे तीव्र वेदना से पीड़ित हो गए। भ्रमण करते-करते शैलकपुर में पधारे। उनका पुत्र मंडुक राजा उपासना के लिए उपस्थित हुआ। उसने राजर्षि शैलक के रोगग्रस्त शरीर को देखकर यथोचित चिकित्सा करवाने की प्रार्थना की। शैलक ने स्वीकृति दी। चिकित्सा होने लगी। विस्मय का विषय है कि चिकित्सकों ने इन्हें मद्यपान का परामर्श दिया और वे मद्यपान करने भी लगे।
मद्यपान जब व्यसन का रूप ग्रहण कर लेता है तो व्यक्ति कितना ही विवेकशील और किसी भी पद पर प्रतिष्ठित क्यों न हो, उसका अध:पतन हुए बिना नहीं रहता। राजर्षि मद्यपान के कुप्रभाव से साधुत्व को भूल गए और सरस भोजन एवं मद्यपान में मस्त रहने लगे। वहाँ से अन्यत्र जाने का विचार तक न आने लगा। तब उनके साथी मुनियों ने एकत्र होकर, एक अनगार पंथक को, जो गृहस्थावस्था में उनका मुख्यमंत्री था, उनकी सेवा में छोड़कर स्वयं विहार कर जाने का निर्णय किया। वे विहार कर गए, राजर्षि वहीं जमे रहे।
कार्तिकी चौमासी का दिन था। शैलक आहार-पानी करके खूब मदिरापान करके सुखपूर्वक सोये पड़े थे। उन्हें आवश्यक क्रिया करने का स्मरण तक न था। पंथक मुनि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने को उद्यत हुए और शैलक के चरणों से अपने मस्तक का स्पर्श किया। शैलक की निद्रा भंग हो गई और वे क्रोध में आग बबूला हो उठे। पंथंक को कटु और कठोर शब्द कहने लगे। पंथक मुनि ने क्षमा-प्रार्थना करते हुए कार्तिकी चौमासी की बात कही।
राजर्षि की धर्म-चेतना जागृत हो उठी। सोचा-राज्य का परित्याग करके मैंने साधुत्व अंगीकार किया और अब ऐसा प्रमत्त एवं शिथिलाचारी हो गया हूँ! साधु के लिए यह सब अशोभन है।
दूसरे ही दिन उन्होंने शैलकपुर छोड़ दिया। पंथक मुनि के साथ विहार कर चले गए। यह समाचार जानकर उनके सभी शिष्य-साथी मुनि उनके साथ आ मिले।
अन्तिम समय में सभी मुनियों ने सिद्धि प्राप्त की।
इस अध्ययन में मुनि-जीवन एवं उनके पारस्परिक संबंध कैसे हों, इसके संबंध में गहरी मीमांसा एवं विचारणा करने की सामग्री विद्यमान है।