Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
आठवाँ अध्ययन : मल्ली ]
[ २२३
दिशाएं सौम्य - उत्पातरहित, वितिमिर - अन्धकार से रहित और विशुद्ध-धूलादि से रहित थीं, वायु दक्षिणावर्त - अनुकूल था, विजयकारक शकुन हो रहे थे, जब देश के सभी लोग प्रमुदित होकर क्रीडा कर रहे थे, ] ऐसे समय में, आरोग्य-आरोग्यपूर्वक अर्थात् बिना किसी बाधा - पीड़ा के उन्नीसवें तीर्थंकर को जन्म दिया।
३०—तेणं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महयरीयाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणं सव्वं भाणियव्वं । नवरं मिहिलाएं नयरीए कुंभरायस्स भवणंसि पभावईए देवीए अभिलावो संदोएव्वो जाव नंदीसरवरे दीवे महिमा |
उस काल और उस समय में अधोलोक में बसने वाली महत्तरिका दिशा- कुमारिकाएं आईं इत्यादि जन्म का जो वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में आया है, वह सब यहां समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि मिथिला नगरी में, कुम्भ राजा के भवन में, प्रभावती देवी का आलापक कहना - नाम कहना चाहिए। यावत् देवों ने जन्माभिषेक करके नन्दीश्वर द्वीप में जाकर (अठाई) महोत्सव किया ।
३१ - तया णं कुंभए राया बहूहिं भवणवइवाण - विंतर - जोइसिय-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयरजम्मण्णाभिसेयं जायकम्मं जाव नामकरणं, जम्हा णं अम्हे इमीए दारियाए माउगब्भंसि वक्कममाणंसि मल्लसयणिज्जंसि डोहले विणीए, तं होउ णं णामेणं मल्ली, नामं ठवेइ, जहा महाबले नाम जाव परिवड्ढिया ।
[ सा वड्ढई, भगवई, दियालोयचुया अणोपसिरीया । दासीदासपरिवुडा, परिकिन्ना पीढमद्देहिं ॥ १ ॥ असियसिरया सुनयणा, बिंबोट्ठी धवलदंतपंतीया । वरकमलगब्भगोरी फुल्लुप्पलगंधनीसासा ॥ २ ॥ ]
तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने एवं बहुत-से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों ने तीर्थंकर का जन्माभिषेक किया, फिर जातकर्म आदि संस्कार किये, यावत् नामकरण किया- क्योंकि जब हमारी यह पुत्री माता के गर्भ में आई थी, तब माल्य (पुष्प) की शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था और वह पूर्ण हुआ था, अतएव इसका नाम 'मल्ली' हो। ऐसा कहकर उसका मल्ली नाम रखा। जैसे भगवतीसूत्र में महाबल नाम रखने का वर्णन है, वैसा ही यहां जानना चाहिए। यावत् मल्ली कुमारी क्रमशः वृद्धि को प्राप्त हुई।
[देवलोक से च्युत हुई वह भगवती मल्ली वृद्धि को प्राप्त हुई तो अनुपम शोभा से सम्पन्न हो गई, दासियों और दासों से परिवृत हुई और पीठमर्दों (सखाओं) से घिरी रहने लगी। उसके मस्तक के केश काले थे, नयन सुन्दर थे, होठ बिम्बफल समान लाल थे, दांतों की कतार श्वेत थी और शरीर श्रेष्ठ कमल के गर्भ के समान गौरवर्ण वाला था । उसका श्वासोच्छ्वास विकस्वर कमल के समान गंध वाला था।]
विवेचन - टीकाकार का कथन है कि प्रायः स्त्रियों के पीठमर्दक नहीं होते, अतः यह विशेषण यहां सम्भव नहीं । या फिर तीर्थंकर का चरित्र लोकोत्तर होता है, अतः असम्भव भी नहीं समझना चाहिए।
कमल का गर्भ गौरवर्ण होता है, मल्ली का वर्ण प्रियंगु के समान श्याम था । अतः यह विशेषण भी उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। वस्तुतः ये दोनों गाथाएं प्रक्षिप्त हैं। इसी कारण इनमें उल्लिखित सब विशेषण मल्ली