Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आठवाँ अध्ययन : मल्ली ]
निप्फन्नसस्समेइणीयंसि कालंसि, पमुझ्यपक्कीलिएसु जणवएसु, अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणी - नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, जे से हेमंताणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे फग्गुणसुद्धे, तस्स णं फग्गुण-सुद्धस्स चउत्थिपक्खेणं जयंताओ विमाणाओ बत्तीससागरोवमट्टिइयाओ अणंतरं चयं चइत्ता इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहिलाए रायहाणीए कुंभगस्स रन्नो पभावईए देवीए कुच्छिसि आहारवक्कंतीए सरीरवक्कंतीए भववक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कंते ।
तत्पश्चत् वह महाबल देव तीन ज्ञानों-मति, श्रुत और अवधि से युक्त होकर, जब समस्त ग्रह उच्च स्थान पर रहे थे, सभी दिशायें सौम्य - उत्पात से रहित, वितिमिर - अंधकार से रहित और विशुद्ध - धूल आदि से रहित थीं, पक्षियों के शब्द आदि रूप शकुन विजयकारक थे, वायु दक्षिण की ओर चल रहा था और वायु अनुकूल अर्थात् शीतल मंद और सुगन्ध रूप होकर पृथ्वी पर प्रसार कर रहा था, पृथ्वी का धान्य निष्पन्न हो गया था, इस कारण लोग अत्यन्त हर्षयुक्त होकर क्रीड़ा कर रहे थे, ऐसे समय में अर्द्ध रात्रि के अवसर पर अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, हेमन्त ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष अर्थात् फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि के पश्चात् भाग - रात्रिभाग में बत्तीस सागरोपम की स्थिति वाले जयन्त नामक विमान से, अनन्तर शरीर त्याग कर, इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरतक्षेत्र में, मिथिला नामक राजधानी में, कुंभ राजा की प्रभावती देवी की कूंख में देवगति सम्बन्धी आहार का त्याग करके, वैक्रिय शरीर का त्याग करके एवं देवभव का त्याग करके गर्भ के रूप उत्पन्न हुआ ।
२६ – तं रयणिं च णं पभावई देवी तंसि तारिसगंसि वासभवणंसि सयणिज्जंसि जाव १ अद्धरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमेयारूवे उराले कल्लाणे सिवे धणे मंगल्ले सस्सिरीए चउद्दसमहासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा तंजहा—
गय-वसह- सीह-अभिसेय-दाम-ससि - दिणयर - झय कुंभे । पउमसर-सागर - विमाण - रयणुच्चय-सिहिं च ॥
१. प्र. अ. १७
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तएं णं सा पभावई देवी जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव र भत्तारकहणं, सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ ।
उस रात्रि में प्रभावती देवी उस प्रकार के उस पूर्ववर्णित ( प्रथम अध्ययन में कथित ) वास भवन में, पूर्ववर्णित शय्या पर यावत् अर्द्ध रात्रि के समय जब न गहरी सोई थी न जाग ही रही थी, बार-बार ऊंघ रही थी, तब इस प्रकार के प्रधान, कल्याणरूप, शिव - उपद्रवरहित, धन्य, मांगलिक और सश्रीक चौदह महास्वप्न देख कर, जागी। वे चौदह स्वप्न इस प्रकार हैं - (१) गज (२) वृषभ (३) सिंह (४) अभिषेक (५) पुष्पमाला (६) चन्द्रमा (७) सूर्य (८) ध्वजा (९) कुम्भ (१०) पद्मयुक्त सरोवर ( ११ ) सागर (१२) विमान (१३) रत्नों की राशि (१४) धूमरहित अग्नि ।
ये चौदह स्वप्न देखने के पश्चात् प्रभावती रानी जहाँ राजा कुम्भ थे, वहाँ आई । आकर पति से स्वप्नों का वृत्तान्त कहा। कुम्भ राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्नों का फल पूछा। यावत् प्रभावती देवी हर्षित एवं संतुष्ट होकर विचरने लगी।
२- ३. देखें प्र. अ. मेघ का गर्भागमन ।