Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा २१-तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'गच्छह णं देवाणुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर जाव [महापह-पहेसु] हत्थिखंधवरगया महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा उग्घोसणं करेह-एवं खलु देवाणुप्पिया! थावच्चापुत्ते संसारभउव्विग्गे, भीए जम्मणमरणाणं, इच्छइ अरहओ अरिठ्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता पव्वइत्तए। तं जो खलु देवाणुप्पिया! राया वा, जुवराया वा, देवी वा, कुमारे वा, ईसरे वा, तलवरे वा, कोडुंबिय-माडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पव्वयंतमणुपव्वयइ, तस्स णं कण्हे वासुदेवे अणुजाणाइ पच्छातुरस्स वि य से मित्त-नाइ-नियग-संबन्धि-परिजणस्स जोगवखेमं वट्ठमाणीं पडिवहइत्ति कटु घोसणं घोसेह।' जाव घोसंति।
थावच्चापुत्र के द्वारा इस प्रकार कहने पर कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो! तुम जाओ और द्वारिका नगरी के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर (महापथ तथा पथ) आदि स्थानों में, यावत् श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर ऊँची-ऊँची ध्वनि से उद्घोष करते, ऐसी उद्घोषणा करो-'हे देवानुप्रियो! संसार के भय से उद्विग्न और जन्म-मरण से भयभीत थावच्चापुत्र अर्हन्त अरिष्टनेमि के निकट मुंडित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहता है तो हे देवानुप्रिय! जो राजा, युवराज, रानी, कुमार, ईश्वर, तलवर, कौटुम्बिक, माडंबिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति अथवा सार्थवाह दीक्षित होते हुए थावच्चापुत्र के साथ दीक्षा ग्रहण करेगा, उसे कृष्ण वासदेव अनुज्ञा देते हैं और पीछे रहे हए उनके मित्र, ज्ञाति, निजक, संबन्धी या परिवार में कोई भी दःखी होगा तो उसके वर्तमान काल संबन्धी योग (अप्राप्त पदार्थ की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त पदार्थ के रक्षण) का निर्वाह करेंगे अर्थात् सर्वप्रकार से उसका पालन, पोषण, सरंक्षण करेंगेइस प्रकार की घोषणा करो।'
कौटुम्बिक पुरुषों ने इस प्रकार की घोषणा कर दी।
२२-तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिससहस्सं णिक्खमणाभिमुहं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं पत्तेयं पत्तेयं पुरिससहस्सवाहिणीसु सिवियासुदुरूढं समाणं मित्तणाइपरिवुडं थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउब्भूयं।
तएणं से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्समंतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-जहा मेहस्स निक्खमणाभिसेओ तहेव सेयापीएहिं ण्हावेइ।
तए णं से थावच्चापुत्ते सहस्सपुरिसेहिं सद्धि सिवियाए दुरूढे समाणे जाव रवेणं बारवइणयरिमझमझेणं [निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेवरेवयगपव्वते जेणेव नंदणवणे उज्जाणे जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिट्ठनेमिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडागं विज्जाहरचारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता सिवियाओ पच्चोरुहति।