Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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(३) शंख-काशीराज,
(५) अदीनशुत्रु-कुरुराज,
(४) रुक्मि-कुणालनरेश, (६) जितशत्रु-पंचालाधिपति ।
[ ज्ञाताधर्मकथा
अनेक बार हम देखते हैं कि वर्तमान जीवन में किसी प्रकार का सम्पर्क न होने पर भी किसी प्राणी पर दृष्टि पड़ते ही हमारे हृदय में प्रीति या वात्सल्य का भाव उत्पन्न हो जाता है और किसी को देखते ही घृणा उमड़ पड़ती है। इन एक दूसरे से विपरीत मनोभावों का कोई व्यक्त कारण नहीं जान पड़ता, मगर ये भाव निष्कारण भी नहीं होते । वस्तुतः पूर्व जन्मों के संस्कारों को साथ लेकर ही मानव जन्म लेता है। वे संस्कार अप्रकट रूप में अपना प्रभाव उत्पन्न करते हैं। पूर्व जन्म में जिस जीव के प्रति हमारा रागात्मक संबन्ध रहा है, उस पर दृष्टि पड़ते ही, अनायास ही, हमारे हृदय में प्रीतिभाव उत्पन्न हो जाता है। इसके विपरीत जिसके साथ वैर-विरोधात्मक संबन्ध रहा है, उसके प्रति सहसा विद्वेष की भावना जागृत हो उठती है । अनेकानेक जैन कथानकों में इस तथ्य की पुष्टि की गई है। भगवान् पार्श्वनाथ और कमठ, महावीर और चरवाहा, समरादित्य आदि इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं ।
हुआ यह कि मल्ली कुमारी के जीव के प्रति उसके पूर्व-साथियों का जो अनुराग का संबन्ध था, वह विभिन्न निमित्त पाकर जागृत हो गया और संयोगवश छहों राजा एक ही साथ उससे विवाह करने को दल-बल के साथ मिथिला नगरी जा पहुँचे। कौन राजा क्या निमित्त पाकर मल्ली पर अनुरक्त हुआ, इसका विस्तृत वर्णन प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है।
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उधर मल्ली कुमारी ने अवधिज्ञान के साथ जन्म लिया था । अवधिज्ञान के प्रयोग से उन्होंने अपने छहों साथियों की अवस्थिति जान ली थी। भविष्य में घटित होने वाली घटना भी उन्हें विदित हो गई थी। अतएव उसके प्रतीकार की तैयारी भी कर ली थी। तैयारी इस प्रकार की थी
मल्ली कुमारी ने हूबहू अपनी जैसी एक प्रतिमा का निर्माण करवाया। अंदर से वह पोली थी और उसके मस्तक में एक बड़ा-सा छिद्र था । उस प्रतिमा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह मल्ली नहीं, मल्ली की प्रतिमा है। मल्ली कुमारी जो भोजन - पान करती उसका एक पिंड मस्तक के छेद में से प्रतिमा में डाल देती थी। वह भोजन - पानी प्रतिमा के भीतर जाकर सड़ता रहता और उसमें अत्यन्त अनिष्ट दुर्गंन्ध उत्पन्न होती। किन्तु ढक्कन होने से वह दुर्गंन्ध वहीं की वहीं दबी रहती थी । जहाँ प्रतिमा अवस्थित थी, उसके इर्दगिर्द मल्ली ने जालीदार गृहों का भी निर्माण करवाया था । उन गृहों में बैठ कर प्रतिमा को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था, किन्तु उन गृहों में बैठने वाले एक दूसरे को नहीं देख सकते थे
जब छह राजा एक साथ मल्ली कुमारी का वरण करने के लिए मिथिला जा पहुँचे तो राजा कुम्भ बहुत असमंजस में पड़ गए। मल्ली की मंगनी पहले छहों ने की थी और कुम्भ राजा ने छहों की मंगनी अस्वीकार कर दी थी। अतएव वे सब मिल कर कुम्भ राजा साथ युद्ध करने के लिए तत्पर थे। परस्पर में परामर्श करके ही वे एक साथ चढ़ आए थे। कुम्भ ने छहों राजाओं का सामना किया। वीरता के साथ संग्राम किया, मगर अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है ? आखिर कुम्भ पराजित हुआ और लौट कर अपने महल में आ गया। वह अत्यन्त गहरे विषाद में डूब गया - किंकर्त्तव्य - मूढ हो गया।