Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा
वाले जनों, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान् पुरुषों, रुक्मिणी आदि बत्तीस हजार रानियों, अनंगसेना आदि अनेक सहस्र गणिकाओं तथा बहुत-से ईश्वरों (ऐश्वर्यवान् धनाढ्य सेठों) तलवरों (कोतवालों) यावत् (माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति) सार्थवाह आदि का एवं उत्तर दिशा में वैताढ्य पर्वत पर्यन्त तथा अन्य तीन दिशाओं में लवणसमुद्र पर्यन्त दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र का और द्वारका नगरी का अधिपतित्व [नेतृत्व, स्वामित्व, भट्टित्व, महत्तरत्व] करते हुए और पालन करते हुए विचरते थे। थावच्चापुत्र
६-तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा णामंगाहावइणी परिवसइ, अड्ढा जाव[ दित्ता वित्ता वित्थिन-विउल-भवन-सयणासण-जाण-वाहणा वहुधणा-जायरूवरयया आओगपओगसंपउत्ता बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूया बहुजणस्स] अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते णामं सत्थवाहदारए होत्था सुकुमालपाणिपाए' जाव सुरूवे।
तएणं सा थावच्चा गाहावइणीतं दारयं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहिकरण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेइ, जाव भोगसमत्थं जाणित्ता बत्तीसाए इब्भकुलबालियाणं एगदिवसेणं पाणिंगेण्हावेइ, बत्तीसओ दाओ जाव बत्तीसाए इब्भकुलबालियाहिं सद्धिं विउले सद्दफरिस-रसरूववन्नगंधे जाव भुंजमाणे विहरइ।
द्वारका नगरी में थावच्चा नामक एक गाथापत्नी (गृहस्थ महिला) निवास करती थी। वह समृद्धि वाली थी यावत् [प्रभावशालिनी थी, विस्तीर्ण और विपुल भवन, शय्या, आसन, यान, वाहन उसके यहाँ थे, वह विपुल स्वर्ण-रजत-धन की स्वामिनी थी, उसके यहाँ लेन-देन होता था, दासियों-दासों-गायों भैसों एवं बकरियों की प्रचुरता थी] बहुत लोग मिलकर भी उसका पराभव नहीं कर सकते थे। उस थावच्चा गाथापत्नी का थावच्चापुत्र नामक सार्थवाह का बालक पुत्र था। उसके हाथ-पैर अत्यन्त सुकुमार थे। वह परिपूर्ण पांचों इन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला, प्रमाणोपेत अंगोपांगों से सम्पन्न और चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाला था। सुन्दर रूपवान् था।
तत्पश्चात् उस थावच्चा गाथापत्नी ने उस पुत्र को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर शुभतिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा। फिर भोग भोगने में समर्थ (युवा) हुआ जानकर इभ्यकुल की बत्तीस कुमारिकाओं के साथ एक ही दिन में पाणिग्रहण कराया। प्रासाद आदि बत्तीस-बत्तीस का दायजा दिया अर्थात् थावच्चापुत्र की बत्तीस पत्नियों के लिए बत्तीस महल आदि सब प्रकार की सामग्री प्रदान की। वह इभ्यकुल की बत्तीस कुमारिकाओं के साथ विपुल शब्द, स्पर्श, रस, रूप, वर्ण और गंध का भोग-उपभोग करता हुआ रहने लगा। अरिष्टनेमि का समवसरण
७-तेणंकालेणं तेणंसमएणं अरहा अरिटुनेमी सोचेव वण्णओ, दसधणुस्सेहे, नीलुप्पलगवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पयासे, अट्ठारसहिं समणसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे, चत्तालीसाए १. प्रथम अ. सूत्र १५