Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पञ्चम अध्ययन : शैलक]
[१५९ अज्जियासा हस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव गामाणुगामंदूइज्जमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव बारवई नयरी, जेणेवरेवयगपव्वए, जेणेव नंदणवणे उज्जाणे, जेणेव सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे, जेणेव असोगवरपायवे, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ।
___ उस काल और उस समय में अरिहन्त अरिष्टनेमि पधारे। धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ की स्थापना करने वाले, आदि वर्णन भगवान् महावीर के वर्णन के समान ही यहाँ समझना चाहिए। विशेषता यह है कि भगवान् अरिष्टनेमि दस धनुष ऊँचे थे, नील कमल, भैंस के सींग, नील गुलिका और अलसी के फूल के समान श्याम कान्ति वाले थे। अठारह हजार साधुओं से और चालीस हजार साध्विओं से परिवृत थे। वे भगवान् अरिष्टनेमि अनुक्रम से विहार करते हुए सुखपूर्वक ग्रामानुग्राम पधारते हुए जहाँ द्वारका नगरी थी, जहाँ गिरनार पर्वत था, जहाँ नन्दनवन नामक उद्यान था, जहाँ सुरप्रिय नामक यक्ष का यक्षायतन था और जहाँ अशोक वृक्ष था, वहीं पधारे। संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। नगरी से परिषद् (जनमंडली) निकली। भगवान् ने उसे धर्मोपदेश दिया। कृष्ण की उपासना
८-तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए मेघोघरसियं गंभीरं महुरसहं कोमुदियं भेरि तालेह।'
__तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ता समाणा हद्वतुटु जाव मत्थए अंजलिं कट्ट एवं सामी! तह'त्ति जाव पडिसुणेति।पडिसुणित्ता कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति।पडिणिक्खमित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कोमुदिया भेरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियं गंभीरं महुरसई भेरि तालेति।
तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने यह कथा (वृत्तान्त) सुनकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाकर मेघों के समूह जैसी ध्वनि वाली एवं गम्भीर तथा मधुर शब्द करने वाली कौमुदी भेरी बजाओ।'
तब वे कौटुम्बिक पुरुष, कृष्ण वासुदेव द्वारा इस प्रकार आज्ञा देने पर हृष्ट-तुष्ट हुए, आनंदित हुए। यावत् मस्तक पर अंजलि करके 'हे भगवन्! बहुत अच्छा' ऐसा कहकर उन्होंने आज्ञा अंगीकार की। अंगीकार करके कृष्ण वासुदेव के पास से चले। चलकर जहाँ सुधर्मा सभा थी और जहाँ कौमुदी नामक भेरी थी, वहाँ आए। आकर मेघ-समूह के समान ध्वनि वाली तथा गंभीर एवं मधुर ध्वनि करने वाली भेरी बजाई।
९-तओ निद्ध-महुर-गंभीरपडिसुएणं पिव सारइएणं बलाहएणं अणुरसियं भेरीए।
उस समय भेरी बजाने पर स्निग्ध, मधुर और गंभीर प्रतिध्वनि करता हुआ, शरदऋतु के मेघ जैसा भेरी का शब्द हुआ।
१०-तए ण तीसे कोमुइयाए भेरियाए तालियाए समणीए बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिन्नाए दुवालसजोयणायामाए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-कंदर-दरी-विवर-कुहर