Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय अध्ययन : अंडक ]
लेता था और सैकड़ों केकाराव करता हुआ नृत्य करता था ।
तत्पश्चात् वह जिनदत्त का पुत्र उस मयूर - बालक के द्वारा चम्पानगरी के शृंगाटकों, (त्रिक, चौक, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग आदि) मार्गों में सैंकड़ों, हजारों और लाखों की होड़ में विजय प्राप्त करता था ।
उपसंहार
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२६ – एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पव्वइए समाणे पंचसु महव्वएसु छसु जीवनिकाएसु निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्विइगिच्छे से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं समणीणं जाव' वीइवइस्सइ । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं णायाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते त्ति बेमि ॥
आयुष्मान् श्रमणो ! इसी प्रकार हमारा जो साधु या साध्वी दीक्षित होकर पाँच महाव्रतों में, षट् after में तथा निर्ग्रन्थ-प्रवचन में शंका से रहित, काँक्षा से रहित तथा विचिकित्सा से रहित होता है, वह इसी भव में बहुत से श्रमणों एवं श्रमणियों में मान-सम्मान प्राप्त करके यावत् संसार रूप अटवी को पार करेगा । जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर ने ज्ञाता के तृतीय अध्ययन का अर्थ फरमाया है।
॥ तृतीय अध्ययन समाप्त ॥
१.द्वि. अ. ५३.