Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन : कूर्म] धीमे पीछे लौट गये, एकान्त में चले गये और निश्चल, निस्पंद तथा मूक होकर ठहर गये।
असंयत कूर्म की दुर्दशा
९-तत्थ णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरंगए दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं एगं पायं निच्छुभइ। तए णं ते पावसियालया तेणं कुम्मएणं सणियं सणियं एगं पायं नीणियं पासंत्ति। पासित्ता ताए उक्किट्ठाए गईए सिग्धं चवलं तरियं चंडं जइणं वेगिई जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छिता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नहिं आलुंपंति दंतेहिं अक्खोडेंति, तओ पच्छा मंसंच सोणियं च आहारेंति, आहारित्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाइंति करेत्तए, ताहे दोच्चं पि अवक्कमंति, एवं चत्तारि वि पाया जाव सणियं सणियं गीवं णीणेइ।तइणं ते पावसियालया तेणं कुम्मएणंगीवंणीणियं पासंति, पासित्ता सिग्धं चवलंतुरियं चंडे नहेहिं दंतेहिं कवालं विहाडेंति, विहाडित्ता तं कुम्मगंजीवियाओ ववरोवेंति, ववरोवित्ता मंसं च सोणियं च आहारेंति।
। उन दोनों कछुओं में से एक कछुए ने उन पापी सियारों को बहुत समय पहले और दूर गया जान कर धीरे-धीरे अपना एक पैर बाहर निकाला।
तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने देखा कि उस कछुए ने धीरे-धीरे एक पैर निकाला है। यह देखकर वे दोनों उत्कृष्ट गति से शीघ्र, चपल, त्वरित, चंड, जययुक्त और वेगयुक्त रूप से जहाँ वह कछुआ था, वहाँ गये। जाकर उन्होंने कछुए का वह पैर नाखूनों से विदारण किया और दांतों से तोड़ा। तत्पश्चात् उसके मांस और रक्त का आहार किया। आहार करके वे कछुए को उलट-पुलट कर देखने लगे, किन्तु यावत् उसकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हुए। तब वे दूसरी बार हट गए-दूर चले गए। इसी प्रकार चारों पैरों के विषय में कहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि शृगालों के दूसरी बार चले जाने पर कछुए ने पैर बाहर निकाला। पास ही छिपे शृगालों ने यह देखा तो वे पुनः झपट कर आ गए और कछुए का दूसरा पैर खा गए। शेष दो पैर और ग्रीवा शरीर में छिपी होने से उनका कुछ भी न बिगाड़ सके। तब निराश होकर शृगाल फिर एक ओर चले गए और छिप गए। जब कुछ देर हो गई तो कछुए ने अपना तीसरा पैर बाहर निकाला। शृगालों ने यह देखकर फिर आक्रमण कर दिया और वह तीसरा पैर भी खा लिया। एक पैर और ग्रीवा फिर भी बची रही। शृगाल उसे न फाड़ सके। तब वे फिर एकान्त में जाकर छिप गये। तत्पश्चात् कछुए ने चौथा पैर बाहर निकाला और तभी शृगालों ने हमला बोल कर वह चौथा पैर भी खा लिया। इसी प्रकार कुछ समय व्यतीत होने पर उस कछुए ने ग्रीवा बाहर निकाली। उन पापी सियारों ने देखा कि कछुए ने ग्रीवा बाहर निकाली है। यह देख कर वे शीघ्र ही उसके समीप आए। उन्होंने नाखूनों से विदारण करके और दाँतों से तोड़ कर उसके कपाल को अलग कर दिया। अलग करके कछुए को जीवन-रहित कर दिया। जीवन-रहित करके उसके मांस और रुधिर का आहार किया।
१. तृ. अ. सूत्र २०