Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१५०]
[ज्ञाताधर्मकथा
गमणाए।
तत्पश्चात् आहार के अर्थी यावत् आहार की गवेषणा करते हुए वे (पूर्वोक्त) दोनों पापी शृगाल मालुकाकच्छ से बाहर निक्ले । निकल कर जहाँ मृतगंगातीर नामक हृद था, वहाँ आए। आकर उसी मृतगंगातीर हृद के पास इधर-उधर चारों ओर फिरने लगे और आहार की खोज करते हुए विचरण करने लगे-आहार की तलाश करने लगे।
तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने उन दो कछुओं को देखा। देखकर जहाँ दोनों कछुए थे, वहाँ आने के लिए प्रवृत्त हुए।
७-तए णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एजमाणे पासंति।पासित्ता भीता तत्था तसिया उब्विगा संजातभया हत्थे य पाए य गीवाओ य सएहिं सएहिं काएहिं साहरंति, साहरित्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया संचिटुंति।
___ तत्पश्चात् उन कछुओं ने उस पापी सियारों को आता देखा। देखकर वे डरे, त्रास को प्राप्त हुए, भागने लगे, उद्वेग को प्राप्त हुए और बहुत भयभीत हुए। उन्होंने अपने हाथ पैर और ग्रीवा को अपने शरीर में गोपित कर लिया-छिपा लिया, गोपन करके निश्चल, निस्पंद (हलन-चलन से रहित) और मौन-शान्त रह गए। शृगालों की चालाकी
८-तए णं ते पावसियालया जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता ते कुम्मगा सव्वओ समंता उव्वत्तेन्ति, परियत्तेन्ति, आसारेन्ति, संसारेन्ति, चालेन्ति, घट्टेन्ति, फंदेन्ति, खोभेन्ति, नहेहिं आलंपंति, दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेवणं संचाएंति तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स आबाहं वा, पबाहं वा, वाबाहं वा उप्पाएत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए।
तए णं ते पावसियालया एए कुम्मए दोच्चं पि तच्चपि सव्वओ समंत। उव्वत्तेति, जाव नो चेवणं संचाएंति करेत्तए।ताहे संता तंता परितंता निम्विन्ना समाणा सणियं सणियं पच्चोसक्कंति, एगंतमवक्कमंति, निच्चला निफंदा तुसिणीया संचिटुंति।
तत्पश्चात् वे पापी सियार जहाँ वे कछुए थे, वहाँ आए। आकर उन कछुओं को सब तरफ से फिरानेघुमाने लगे, स्थानान्तरित करने लगे, सरकाने लगे, हटाने लगे, चलाने लगे, स्पर्श करने लगे, हिलाने लगे, क्षुब्ध करने लगे, नाखूनों से फाड़ने लगे और दाँतों से चीथने लगे, किन्तु उन कछुओं के शरीर को थोड़ी बाधा, अधिक बाधा या विशेष बाधा उत्पन करने में अथवा उनकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हो सके।
तत्पश्चात् उन पापी सियारों ने इन कछुओं को दूसरी बार और तीसरी बार सब ओर से घुमायाफिराया, किन्तु यावत् वे उनकी चमड़ी छेदने में समर्थ न हुए। तब वे श्रान्त हो गये-शरीर से थक गए, तान्त हो गए-मानसिक ग्लानि को प्राप्त हुए और शरीर तथा मन दोनों से थक गए तथा खेद को प्राप्त हुए। धीमे