Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१२४]
[ज्ञाताधर्मकथा छड्डेज्जा, नो चेवणं तव पुत्तधायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडिणीयस्स पच्चामित्तस्स एत्तो विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेग्जामि।'
उस समय विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से इस प्रकार कहा–'देवानुप्रिय! तुम मुझे इस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन में से संविभाग करो-हिस्सा दो।'
तब धन्य सार्थवाह ने उत्तर में विजय चोर से इस प्रकार कहा–'हे विजय! भले ही मैं यह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम काकों और कुत्तों को दे दूंगा अथवा उकरड़े में फैंक दूंगा परन्तु तुझ पुत्रघातक, पुत्रहन्ता, शत्रु, वैरी (सानुबन्ध वैर वाले), प्रतिकूल आचरण करने वाले एवं प्रत्यमित्र-प्रत्येक बातों में विराधी को इस अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य में से संविभाग नहीं करूंगा।'
३६-तएणंधण्णे सत्थवाहे तं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारेई।आहारित्ता तं पंथयं पडिविसज्जेइ।तएणं से पंथए दासचेडे तं भोयणपिडगं गिण्हइ, गिण्हित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
इसके बाद धन्य सार्थवाह ने उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आहार किया। आहार करके पंथक को लौटा दिया-रवाना कर दिया। पंथक दास चेटक ने भोजन का वह पिटक लिया और लेकर जिस ओर से आया था, उसी ओर लौट गया।
३७-तए णं तस्स धण्णस्स एत्थवाहस्स तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं आहारियस्स समाणस्स उच्चार-पासवणेणं उव्वाहित्था।
तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया! एगंतमवक्कमामो जेण अहं उच्चारपासवणं परिट्ठवेमि।
तएणं से विजए तक्करेधण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-तुब्भं देवाणुप्पिया! विपुलं असणपाण-खाइम-साइमं आहारियस्स अत्थि उच्चारे वा पासवणे वा, मम णं देवाणुप्पिया! इमेहिं बहूहिं कसप्पहारेहि य जाव लयापहारेहि य तण्हाए य छुहाए य परब्भवमाणस्स णत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा, तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया! एगते अवक्कमित्ता उच्चारपासवणं परिढुवेहि।
विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन करने के कारण धन्य सार्थवाह को मल-मूत्र की बाधा उत्पन्न हुई।
तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर से कहा-विजय! चलो, एकान्त में चलें, जिससे मैं मल-मूत्र का त्याग कर सकूँ।
तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा-देवानुप्रिय! तुमने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार किया है, अतएव तुम्हें मल और मूत्र की बाधा उत्पन्न हुई है। देवानुप्रिय! मैं तो इन बहुत चाबुकों के प्रहारों से यावत् लता के प्रहारों से तथा प्यास और भूख से पीड़ित हो रहा हूँ। मुझे मल-मूत्र की बाधा नहीं है। देवानुप्रिय! जाने की इच्छा हो तो तुम्ही एकान्त में जाकर मल-मूत्र का त्याग करो। (मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगा)।