Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय अध्ययन : अंडक]
[१३९ में प्रविष्ट हुए।
- उस समय देवदत्ता गणिका ने सार्थवाहपुत्रों को आता देखा। देखकर वह हृष्ट-तुष्ट होकर आसन से उठी और उठकर सात-आठ कदम सामने गई। सामने जाकर उसने सार्थवाहपुत्रों से इस प्रकार कहादेवानुप्रियो ! आज्ञा दीजिए, आपके यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?
११-तएणं ते सत्थवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी-'इच्छामो णं देवाणुप्पिए! तुम्हेहिं सद्धिं सुभूमिभागस्स उजाणस्स उजाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए।'
तए ण सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता प्रहाया कयवलिकम्मा जाव सिरिसमाणवेसा जेणेव सत्थवाहदारगा तेणेव समागया।
तत्पश्चात् सार्थवाहपुत्रों ने देवदत्ता गणिका से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिये! हम तुम्हारे साथ सुभूमिभाग नामक उद्यान की श्री का अनुभव करते हुए विचरना चाहते हैं।'
गणिका देवदत्ता ने उन सार्थवाहपुत्रों का यह कथन स्वीकार किया। स्वीकार करके स्नान किया, मंगलकृत्य किया यावत् लक्ष्मी के समान श्रेष्ठ वेष धारण किया। जहाँ सार्थवाहपुत्र थे वहाँ आ गई।
१२-तएणं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं जाणं दुरूहंति, दुरूहित्ता चंपाए नयरीय मझंमज्झेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे, जेणेव नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता गंदापोक्खरिणिं ओगाहिति। ओगाहित्ता जलमजणं करेंति, जलकीडं करेंति, बहाया देवदत्ताए सद्धिं पच्चुत्तरंति।जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थूणामंडवं अणुपविसित्ता सव्वालंकारविभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धिं तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं धूवपुप्फगंधवत्थं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धिं विपुलाइं माणुस्सगाई कामभोगाइं भुंजमाणा विहरंति।
तत्पश्चात् वे सार्थवाहपुत्र देवदत्ता गणिका के साथ यान पर आरूढ हुए और चम्पानगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ सुभूमिभाग उद्यान था और जहाँ नन्दा पुष्करिणी थी, वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर यान (रथ) से नीचे उतरे । उतर कर नंदा पुष्करिणी में अवगाहन किया। अवगाहन करके जल-मज्जन किया, जल-क्रीड़ा की, स्नान किया और फिर देवदत्ता के साथ बाहर निकले। जहाँ स्थूणामंडप था वहाँ आये। आकर स्थूणामंडप में प्रवेश किया। सब अलंकारों से विभूषित हुए, आश्वस्त (स्वस्थ) हुए, विश्वस्त (विश्रान्त) हुए, श्रेष्ठ आसन पर बैठे। देवदत्ता गणिका के साथ उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा धूप, पुष्प, गंध और वस्त्र का उपभोग करते हुए, विशेषरूप से आस्वादन करते हुए, विभाग करते हुए एवं भोगते हुए विचरने लगे। भोजन के पश्चात् देवदत्ता के साथ मनुष्य संबंधी विपुल कामभोग भोगते हुए विचरने लगे।
१३-तए णं सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धिं थूणामंडवाओ पडिणिक्खमंति।पडिणिक्खमित्ता हत्थसंगेल्लीए सुभूमिभागे बहुसुआलिघरएसु य कयलीघरएसुयलयाघरएसुय अच्छणघरएसुयपेच्छणघरएसुय पसाहणघरएसुय मोहणघरएसु