Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१००]
[ज्ञाताधर्मकथा पच्चक्खाए, मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेजे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरई-रई मायामोसे मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए।
इयाणिं पियणं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि। सव्वं असण-पाण-खाइम-साइमं चउव्विहं पि आहारं पच्चक्खामि जावजीवाए। जंपि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव' (मणुण्णं मणामं थेजं वेस्सासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, मा णं वाला मा णं दंसा, मा णं मसगा, मा णं वाइय-पित्तिय-संभिय-सण्णिवाइय) विविहा रोगायंका परीसहोव सग्गा फुसंतीति कट्ट एयं पियणंचरमेहिं ऊसास निस्सासेहिं वोसिरामित्ति कट्टसंलेहणा झूसणा झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणं विहरइ।
पहले भी मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट समस्त प्राणातिपात का त्याग किया है, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान (मिथ्या दोषारोपण करना), पैशुन्य (चुगली), परपरिवाद (पराये दोषों का प्रकाशन), धर्म में अरति, अधर्म में रति, मायामृषा (वेष बदल कर ठगाई करना) और मिथ्यादर्शनशल्य, इन सब अठारह पापस्थानों का प्रत्याख्यान किया है।
अब भी मैं उन्हीं भगवान् के निकट सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ, यावत् मिथ्यादर्शनशल्य का प्रत्याख्यान करता हूँ तथा सब प्रकार के अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चारों प्रकार के आहार का आजीवन प्रत्याख्यान करता हूँ। और यह शरीर जो इष्ट है, कान्त (मनोहर) है और प्रिय है, यावत् [मनोज्ञ, मणाम (अतीव मनोज्ञ), धैर्यपात्र, विश्वासपात्र, सम्मत, बहुमत, अनुमत, आभूषणों का पिटारा जैसे है, इसे शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा, चोर, सर्प, डाँस, मच्छर आदि की बाधा न हो. वात पित्त एवं कफ संबंधी विविध प्रकार के रोग, शूलादिक आतंक, बाईस परीषह और उपसर्ग स्पर्श न करें, ऐसे रक्षा की है, इस शरीर का भी मैं अन्तिम श्वासोच्छ्वास पर्यन्त परित्याग करता हूँ।'
इस प्रकार कहकर संलेखना को अंगीकार करके, भक्तपान का त्याग करके, पादपोपगमन समाधिमरण अंगीकार कर मृत्यु की भी कामना न करते हुए मेघ मुनि विचरने लगे।
२०९-तए णं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए यावडियं करेन्ति। तब वे स्थविर भगवन्त ग्लानिरहित होकर मेघ अनगार की वैयावृत्य करने लगे।
२१०–तएणं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाईएक्कारसअंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुन्नाई दुवालसवरिसाइं सामनपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेत्ता सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेएत्ता आलोइयपडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते आणुपुव्वेणं कालगए।
१. संक्षिप्तपाठ-पियं जाव विविहा.