Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ज्ञाताधर्मकथा विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिजे से के णं जाणइ अम्मयाओ! के पुव्वि गमणाए ? के पच्छा गमणाए? तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए।'
___ तत्पश्चात् माता-पिता के इस प्रकार कहने पर मेघकुमार ने माता-पिता से कहा-'हे माता-पिता! आप मुझसे यह जो कहते हैं कि-हे पुत्र! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इत्यादि सब पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् सांसारिक कार्य से निरपेक्ष होकर श्रमण भगवान् महावीर के समीप प्रव्रजित होना-सो ठीक है, परन्तु हे मातापिता! यह मनुष्यभव ध्रुव नहीं है अर्थात् सूर्योदय के समान नियमित समय पर पुनः पुनः प्राप्त होने वाला नहीं है, नियत नहीं है अर्थात् इस जीवन में उलटफेर होते रहते हैं, यह अशाश्वत है अर्थात् क्षण-विनश्वर है, तथा सैकड़ों व्यसनों एवं उपद्रवों से व्याप्त है, बिजली की चमक के समान चंचल है, अनित्य है, जल के बुलबुले के समान है, दूब की नोंक पर लटकने वाले जलबिन्दु के समान है, सन्ध्यासमय के बादलों की लालिमा के सदृश है, स्वप्नदर्शन के समान है-अभी है और अभी नहीं है, कुष्ठ आदि से सड़ने, तलवार आदि से कटने और क्षीण होने के स्वभाव वाला है तथा आगे या पीछे अवश्य ही त्याग करने योग्य है। हे माता-पिता! इसके अतिरिक्त कौन जानता है कि कौन पहले जाएगा (मरेगा) और कौन पीछे जाएगा? अतएव हे माता-पिता! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त करके श्रमण भगवान् महावीर के निकट यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ।'
१२३-तएणं तं मेहं कुमार अम्मापियरो एवं वयासी-'इमाओ ते जाया! सरिसियाओ सरिसत्तयाओ सरिसव्वयाओ सरिसलावन्नरूवजोव्वणगुणोववयाओ सरिसेहिन्तो रायकुलेहिन्तो आणियल्लियाओ भारियाओ, तं भुंजाहि णं जाया! एताहिं सद्धिं विपुले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि।'
तत्पश्चात् माता-पिता ने मेघकुमार से इस प्रकार कहा–'हे पुत्र! यह तुम्हारी भार्याएँ समान शरीर वाली, समान त्वचा वाली, समान वय वाली, समान लावण्य, रूप, यौवन और गुणों से सम्पन्न तथा समान राजकुलों से लाई हुई हैं। अतएव हे पुत्र! इनके साथ विपुल मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगो। तदनन्तर भुक्तभोग होकर श्रमण भगवान् महावीर के निकट यावत् दीक्षा ले लेना।
१२४–तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं वयासी-'तहे णं अम्मयाओ! जं णं तुब्भे ममं एवं वयह-'इमाओ ते जाया! सरिसियाओ जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स पव्वइस्ससि'-एव खलु अम्मयाओ! माणुस्सगा कामभोगा असुई असासया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुस्सासनीसासा दुरुयमुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुन्ना उच्चारपासवण-खेल-जल्ल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणितसंभवा अधुवा अणियया असासया सडण-पडण-विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरंचणं अवस्सविप्पजहणिज्जा।सेकेणं अम्मयाओ! जाणंति के पुव्वि गमणाए? के पच्छा गमणाए! तं इच्छामि णं अम्मयाओ! जाव पव्वइत्तए।'
तत्पश्चात् मेघकुमार ने माता-पिता से इस प्रकार कहा-'हे माता-पिता! आप मुझे यह जो कहते हैं कि-'हे पुत्र! तेरी ये भार्याएँ समान शरीर वाली हैं इत्यादि, यावत् इनके साथ भोग भोगकर श्रमण भगवान् महावीर के समीप दीक्षा ले लेना; सो ठीक है, किन्तु हे माता-पिता! मनुष्यों के ये