Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ज्ञाताधर्मकथा
'भगवन्! आपकी अनुमति प्राप्त करके मैं दो मास की भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करके विचरना
चाहता हूँ।'
भगवान् ने कहा - 'देवानुप्रिय ! जैसे सुख उपजे वैसा करो । प्रतिबन्ध मत करो।'
जिस प्रकार पहली प्रतिमा में आलापक कहा है, उसी प्रकार दूसरी प्रतिमा दो मास की, तीसरी तीन मास की, चौथी चार मास की, पाँचवीं पाँच मास की, छठी छह मास की, सातवीं सात मास की, फिर पहली अर्थात् आठवीं सात अहोरात्र की, दूसरी अर्थात् नौवीं भी सात अहोरात्र की, तीसरी अर्थात् दसवीं भी सात अहोरात्र की और ग्यारहवीं तथा बारहवीं प्रतिमा एक - एक अहोरात्र की कहना चाहिए। (मेघमुनि ने इन सब प्रतिमाओं का यथाविधि पालन किया ।)
उग्र तपश्चरण
१९८ - तए णं से मेहे अणगारे बारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं कारणं फासेत्ता पालेत्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - 'इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्ना ममाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए ।
'अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह ।'
तत्पश्चात् मेघ अनगार ने बारहों भिक्षुप्रतिमाओं का सम्यक् प्रकार से काय से स्पर्श करके, पालन करके, शोधन करके, तीर्ण करके और कीर्तन करके पुनः श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन- नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार कहा- भगवन्! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त करके गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चरण अंगीकार करना चाहता हूँ।
भगवान् बोले – हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख उपजे वैसा करो । प्रतिबन्ध मत करो।'
विवेचन - गुणरत्नसंवत्सर नामक तप में तेरह मास और सत्तरह दिन उपवास के होते हैं। और तिहत्तर दिन पारणा के । इस प्रकार सोलह मास में इस तप का अनुष्ठान किया जाता है। तपस्या का यंत्र इस प्रकार है
मास
१
२
३
४
५
६
७
८
९
&
१०
११
तप
उपवास
बेला
तेला
चौला
पंचोला
छह उपवास
सात उपवास
आठ उपवास नौ उपवास
दस उपवास
ग्यारह उपवास
तपोदिन
१५
२०
* * Z * 2 2 2 0 m
२४
२४
२५
२४
२१
२४
२७
३०
३३
पारणादिवस
१५
१०
८
६
५
४
३
३
३
३
३
कुल दिन
३०
३०
३२
३०
३०
२८
२४
२७
३०
३३
३६