Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
६४]
[ज्ञाताधर्मकथा
तत्पश्चात् जब माता-पिता मेघकुमार को विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत-सी आख्यापना, प्रज्ञापना और विज्ञापना से समझाने, बुझाने, सम्बोधन करने और विज्ञप्ति करने में समर्थ न हुए, तब इच्छा के विना भी मेघकुमार से इस प्रकार बोले-'हे पुत्र! हम एक दिन भी तुम्हारी राज्यलक्ष्मी देखना चाहते हैं। अर्थात् हमारी इच्छा है कि तुम एक दिन के लिए राजा बन जाओ।'
१३२-तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणुवत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ।
तब मेघ कुमार माता-पिता (की इच्छा) का अनुसरण करता हुआ मौन रह गया। राज्याभिषेक
१३३–तएणं सेणिए राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मेहस्स कुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव (महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायाभिसेयं) उवट्ठवेन्ति।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों-सेवकों को बुलवाया और बुलवा कर ऐसा कहा'देवानुप्रियो! मेघकुमार का महान् अर्थ वाले, बहुमूल्य एवं महान् पुरुषों के योग्य विपुल राज्याभिषेक (के योग्य सामग्री) तैयार करो।' तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् (महार्थ, बहुमूल्य, महान् पुरुषों के योग्य, विपुल) राज्याभिषेक की सब सामग्री तैयार की।
१३४-तएणं सेणिए राया बहूहिंगणणायग-दंडणायगेहि यजाव' संपरिवुडे मेहं कुमारं अट्ठसएणं सोवत्रियाणं कलसाणं, रुप्पमयाणं कलसाणं, सुवण्ण-रुप्पमयाणं कलसाणं, मणिमयाणं कलसाणं, सुवन-मणिमयाणं कलसाणं, रुप्प-मणिमयाणं कलसाणं, सुवण्ण-रुप्पमणिमयाणं कलसाणं, भोमेजाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहिं सव्वोसहिहि य, सिद्धत्थएहि य, सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं जाव दुंदुभिनिग्घोस-णादियरवेणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयल जाव परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने बहुत से गणनायकों एवं दंडनायकों आदि से परिवृत होकर मेघकुमार को, एक सौ आठ सुवर्ण कलशों, इसी प्रकार एक सौ आठ चाँदी के कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-रजत के कलशों, एक सौ आठ मणिमय कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-मणि के कलशों, एक सौ आठ रजत-मणि के कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-रजत-मणि के कलशों और एक सौ आठ मिट्टी के कलशों-इस प्रकार आठ सौ चौसठ कलशों में सब प्रकार का जल भरकर तथा सब प्रकार की मृत्तिका से, सब प्रकार के पुष्पों से, सब प्रकार के गंधों से, सब प्रकार की मालाओं से, सब प्रकार की औषधियों से तथा सरसों से उन्हें परिपूर्ण करके, सर्व समृद्धि, द्युति तथा सर्व सैन्य के साथ, दुंदुभि के निर्घोष की प्रतिध्वनि के शब्दों के साथ उच्चकोटि के राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। अभिषेक करके श्रेणिक राजा ने दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि घुमाकर यावत् इस प्रकार कहा
१३५-'जय जय णंदा! जय जय भद्दा! जय णंदा भदं ते, अजियं जिणेहि, जियं
१. प्र. सूत्र ३०