Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
[४७
संबंधी दोहद हुआ था। अतएव हमारे इस पुत्र का नाम मेघकुमार होना चाहिए। इस प्रकार माता-पिता ने गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम रक्खा। मेघकुमार का लालन-पालन
९६-तए णं से मेहकुमारे पंचधाईपरिग्गहिए। तंजहा-खीरधाईए, मंडणधाईए, मजणधाईए, कीलावणधाईए, अंकधाईए। अन्नाहि य बहूहिं खुजाहिं चिलाइयाहिं वामणिवडभि-बब्बरि-वउसिजोणियाहिं पल्हविय-ईसिणिय-धोरुगिणि-लासिय-लउसिय-दमिलिसिंहलि-आरबि-पुलिंदि-पक्वणिबहलि-मुरुंडि-सबरि-पारसीहिणाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगित-चिंतिय-पत्थिय-वियाणियाहिं सदेसनेवत्थगहियवेसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-कंचुइअ-महयरगवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं संहरिजमाणे, अंकाओ अंकं परिभुजमाणे, परिगिजमाणे, चालिजमाणे, उवलालिजमाणे, रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि परिमिजमाणे परिमिजमाणे णिव्वायणिव्वाघायंसि गिरिकन्दरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं वड्डइ।
. तत्पश्चात् मेघकुमार पाँच धायों द्वारा ग्रहण किया गया-पाँच धाएँ उसका लालन-पोषण करने लगीं। वे इस प्रकार थीं-(१) क्षीरधात्री-दूध पिलाने वाली धाय, (२) मंडनधात्री-वस्त्राभूषण पहनाने वाली धाय, (३) मज्जनधात्री-स्नान कराने वाली धाय, (४) क्रीड़ापनधात्री-खेल खिलाने वाली धाय और (५) अंकधात्री-गोद में लेने वाली धाय। इनके अतिरिक्त वह मेघकुमार अन्यान्य कुब्जा (कुबड़ी), चिलातिका (चिलात-किरात नामक अनार्य देश में उत्पन्न), वामन (बौनी), वडभी (बड़े पेट वाली), बर्बरी (बर्बर देश में उत्पन्न), बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविक देश की, ईसिनिक, धोरुकिन, ल्हासक देश की, लकुस देश की, द्रविड देश की, सिंहल देश की, अरब देश की, पुलिंद देश की, पक्कण देश की, पारस देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, इस प्रकार नाना देशों की, परदेश-अपने देश से भिन्न राजगृह को सुशोभित करने वाली, इंगित (मुख आदि की चेष्टा), चिन्तित (मानसिक विचार) और प्रार्थित (अभिलषित) को जानने वाली, अपने-अपने देश के वेष को धारण करने वाली, निपुणों में भी अतिनिपुण, विनययुक्त दासियों के द्वारा तथा स्वदेशीय दासियों द्वारा और वर्षधरों (प्रयोग द्वारा नपुंसक बनाए हुए पुरुषों), कंचुकियों और महत्तरकों (अन्तःपुर के कार्य की चिन्ता रखने वालों) के समुदाय से घिरा रहने लगा। वह एक के हाथ से दूसरे के हाथ में जाता, एक की गोद से दूसरे की गोद में जाता, गा-गाकर बहलाया जाता, उंगली पकड़कर चलाया जाता, क्रीडा आदि से लालन-पालन किया जाता एवं रमणीय मणिजटित फर्श पर चलाया जाता हुआ वायुरहित और व्याघातरहित गिरिगुफा में स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा।
९७-तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं नामकरणंच पजेमणंच एवं चंकमणगं च चोलोवणयं च महया महया इड्डीसक्कारसमुदएणं करिसु।
तत्पश्चात् उस मेघकुमार के माता-पिता ने अनुक्रम से नामकरण, पालने में सुलाना, पैरों से चलाना, चोटी रखना, आदि संस्कार बड़ी-बड़ी ऋद्धि और सत्कारपूर्वक मानवसमूह के साथ सम्पन्न किए।