Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२०]
[ज्ञाताधर्मकथा का बल बढ़ाने वाले) मदनीय (कामवर्धक), बृहणीय (मांसवर्धक) तथा समस्त इन्द्रियों को एवं शरीर को आह्लादित करने वाले थे, राजा श्रेणिक ने अभ्यंगन कराया। फिर मालिश किये शरीर के चर्म को, परिपूर्ण हाथपैर वाले तथा कोमल तल वाले, छेक (अवसर के ज्ञाता), दक्ष (चटपट कार्य करने वाले), पढे (बलशाली), कुशल (मर्दन करने में चतुर), मेधावी (नवीन कला को ग्रहण करने में समर्थ), निपुण (क्रीड़ा करने में कुशल), निपुण शिल्पी (मर्दन के सूक्ष्म रहस्यों के ज्ञाता), परिश्रम को जीतने वाले, अभ्यंगन मर्दन उद्वर्तन करने के गुणों से पूर्ण पुरुषों द्वारा अस्थियों को सुखकारी, मांस को सुखकारी, त्वचा को सुखकारी तथा रोमों को सुखकारी-इस प्रकार चार तरह को संबाधना से (मर्दन से) श्रेणिक के शरीर का मर्दन किया गया। इस मालिश और मर्दन से राजा का परिश्रम दूर हो गया-थकावट मिट गई। वह व्यायामशाला से बाहर निकला।
३०-पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ। अणुपविसित्ता समंतजालाभिरामे विचित्तमणि-रयणकोट्टिमतले रमणिजे ण्हाणमंडवंसि णाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसन्ने।
सुहोदगेहिं फुफ्फोदगेहिं गंधोदएहिं, सुद्धोदएहिं य पुणो पुणो कल्लाणगपवरमजणविहीए मजिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हल सुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे अहत-सुमहग्घ-दूसरयणसुसंवुए सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगते सुइमालावन्नगविलेवणे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार-तिसर-पालंब-पलंबमाणकडिसुत्तसुकयसोहे पिणद्धगेविजे अंगुलेजग-ललियंग-ललियकयाभरणे णाणामणि-कडग-तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुजोइयाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकय-रइयवच्छे पालब-पलंबमाण-सुकय-पडउत्तरिजे मुद्दियापिंगलंगुलीए णाणामणि-कणग-रयणविमलमहरिहनिउणोविय-मिसिमिसंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थआविद्ध-वीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव सुअलंकियविभूसिए नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उभओ चउचामरवालवीइयंगे मंगल-जयसद्दकालोए अणेगगणनायगदंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-मंति-पहामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेडपीढमद्द-नगर-निगम-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए विव गहगणदिप्पंतरिक्खतारागणाण मझे ससि व्व पियदंसणे नरवई मजणघराओ पडिनिक्खमइ। पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे संनिसन्ने।
व्यायामशाला से बाहर निकलकर श्रेणिक राजा जहाँ मज्जनगृह (स्नानागार) था, वहाँ आता है। आकर मज्जनगृह में प्रवेश करता है। प्रवेश करके चारों ओर जालियों से मनोहर, चित्र-विचित्र मणियों और रत्नों के फर्श वाले तथा रमणीय स्नानमंडप के भीतर विविध प्रकार के मणियों और रत्नों की रचना से चित्रविचित्र स्नान करने के पीठ-बाजौठ पर सुखपूर्वक बैठा।
उसने पवित्र स्थान से लाए हुए शुभ जल से, पुष्पमिश्रित जल से, सुगंध मिश्रित जल से और शुद्ध जल से बार-बार कल्याणकारी-आनन्दप्रद और उत्तम विधि से स्नान किया। उस कल्याणकारी और उत्तम स्नान के अंत में रक्षा पोटली आदि सैंकड़ों कौतुक किये गए। तत्पश्चात् पक्षी के पंख के समान अत्यन्त कोमल, सुगंधित और काषाय (कसैल) रंग से रंगे हुए वस्त्र से शरीर को पोंछा। कोरा, बहुमूल्य और श्रेष्ठ वस्त्र धारण