Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ ज्ञाताधर्मकथा
अष्टापद, चमरी गाय, हाथी, वनलता और पद्मलता आदि के चित्रों से युक्त, श्रेष्ठ स्वर्ण के तारों से भरे हुए सुशोभित किनारों वाली जवनिका (पर्दा) सभा के भीतरी भाग में बँधवाई। जवनिका बँधवाकर उसके भीतरी भाग में धारिणी देवी के लिए एक भद्रासन रखवाया । वह भद्रासन आस्तरक (खोली) और कोमल तकिया से ढका था। श्वेत वस्त्र उस पर बिछा हुआ था । सुन्दर था । स्पर्श से अंगों को सुख उत्पन्न करने वाला था और अतिशय मृदु था। इस प्रकार आसन बिछाकर राजा ने कोटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया। बुलवाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! अष्टांग महानिमित्त - ज्योतिष के सूत्र और अर्थ के पाठक तथा विविध शास्त्रों में 'कुशल स्वप्नपाठकों (स्वप्नशास्त्र के पंडितों) को शीघ्र ही बुलाओ और बुलाकर शीघ्र ही इस आज्ञा को वापिस लौटाओ ।
३२ - तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठ जाव' हियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु 'एवं देवो तह त्ति' आणाए विणणं वयणं पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता सेणियस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेंति ।
तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित यावत् आनन्दितहृदय हुए। दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को इकट्ठा करके मस्तक पर घुमा कर अंजलि जोड़कर 'हे देव! ऐसा ही हो' इस प्रकार कह कर विनय के साथ आज्ञा के वचनों को स्वीकार करते हैं और स्वीकार करके श्रेणिक राजा के पास से निकलते हैं । निकल कर राजगृह के बीचों बीच होकर जहाँ स्वप्नपाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचते हैं और पहुंच कर स्वप्नपाठकों को बुलाते हैं।
३३ – तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रन्नो कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्टतुट्ठ जाव' हिया हाया कयबलिकम्मा जाव कयकोउयमंगलपायच्छित्ता अप्प - महग्घाभरणालंकियसरीरा हरियालिय-सिद्धत्थकयमुद्धाणा सएहिं सएहिं गिहेहिंतो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स मज्झमज्झेण जेणेव सेणियस्स रन्नो भवणवडेंसगदुवारे तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता एगयओ मिलन्ति, मिलित्ता सेणियस्स रन्नो भवणवडेंसगदुवारेणं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिये राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति । सेणिएणं रन्ना अच्चिय-वंदियपूइय-मणिय-सक्कारिय- सम्माणिया समाणा पत्तेयं पत्तेयं पुव्वन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ।
तत्पश्चात् वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये जाने पर हृष्ट-तुष्ट यावत् आनन्दितहृदय हुए। उन्होंने स्नान किया, कुलदेवता का पूजन किया, यावत् कौतुक (मसी तिलक आदि) और मंगल प्रायश्चित्त (सरसों, दही, चावल आदि का प्रयोग ) किया। अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत किया, मस्तक पर दूर्वा तथा सरसों मंगल निमित्त धारण किये। फिर अपने-अपने घरों से निकले। निकल कर राजगृह के बीचोंबीच होकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार पर आये। आकर सब एक साथ मिले। एक साथ मिलकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार के भीतर प्रवेश किया। प्रवेश करके जहाँ बाहरी १. सूत्र १८, २. सूत्र १८