Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
[३१ कर इस प्रकार कहती हैं-'स्वामिन् ! आज धारिणी देवी जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर वाली होकर यावत् आर्त्तध्यान से युक्त होकर चिन्ता में डूब रही हैं।'
५१-तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा णिसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्धं तुरिअंचवलं वेइयं जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ।उवागच्छित्ता धारिणिं देविं ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं जाव अट्टज्झाणोवगयं झियायमाणिं पाइस। पासित्ता एवं वयासी-"किंणं तुमे देवाणुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया झियायसि?"
तब श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं से यह सुनकर, मन में धारण करके, उसी प्रकार व्याकुल होता हुआ, त्वरा के साथ एवं अत्यन्त शीघ्रता से जहाँ धारणी देवी थी, वहाँ आता है। आकर धारिणी देवी को जीर्ण-जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत् आर्तध्यान से युक्त-चिन्ता करती देखता है। देखकर इस प्रकार कहता है-'देवानुप्रिये ! तुम जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत् आर्तध्यान से युक्त होकर क्यों चिन्ता कर रही हो?'
५२-तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ, जाव तुसिणीया संचिट्ठति।
धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर भी आदर नहीं करती-उत्तर नहीं देती, यावत् मौन रहती है।
५३-तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदासी-'किं णं तुमे देवाणुप्पिए! ओलुग्गा जाव झियायसि?'
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने धारिणी देवी से दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी इसी प्रकार कहादेवानुप्रिये तुम जीर्ण-सी होकर यावत् चिन्तित क्यों हो?
५४-तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा दोच्चं पितच्चं पि एवं वुत्ता समाणी णो आढाति, णो परिजाणाति, तुसिणीया संचिट्ठइ।
तत्पश्चात् धारिणी देवी श्रेणिक राजा के दूसरी बार और तीसरी बार भी इस प्रकार कहने पर आदर नहीं करती और नहीं जानती-मौन रहती है।
__५५-तए णं सेणिए राया धारिणिं देविं सवहसावियं करेइ, करित्ता एवं वयासी'किं णं तुमं देवाणुप्पिए! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए? ता णं तुमं ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि?'
तब श्रेणिक राजा धारिणी देवी को शपथ दिलाता है और शपथ दिलाकर कहता है-'देवानुप्रिये! क्या मैं तुम्हारे मन की बात सुनने के लिए अयोग्य हूँ, जिससे तुम अपने मन में रहे हुए मानसिक दुःख को छिपाती हो?' दोहद-निवेदन
५६-तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रण्णा सवहसाविया समाणी सेणियं रायं एवं वदासी-'एवं खलु सामी! मम तस्स उरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे अकालमेहेसुदोहले पाउब्भूए-धनाओणं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओणं ताओ