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८. पुवासाढनक्खत्ते पण्णत्ते ।
चउत्तारे
८. पूर्वापाढ़ा नक्षत्र के चार तारे प्रज्ञप्त
चउत्तारे
९. उत्तरासाढनक्खत्ते
पण्पते।
. उत्तरापाढ़ा नक्षत्र के चार तारे प्रजप्त हैं।
१०. इमीसे गं रयणप्पहाए पुढवीए
प्रत्येगइयाणं नेरइयारणं चत्तारि पलियोवमाइं ठिई पण्णता।
१०. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नैर
यिकों की चार पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
११. तच्चाए णं पुढवीए प्रत्येगइयाणं
नेरइयाणं चतारि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
११. तीसरी पृथिवी [वालुकाप्रभा] पर
कुछेक नैरयिकों की चार सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१२. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइ-
याणं चत्तारि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१२. कुछेक असुरकुमार देवों की चार
पल्योपम स्थिति प्राप्त है ।
१३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु प्रत्येगइ.
याणं देवाणं चत्तारि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१३. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों की
चार पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है ।
१४. सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु अत्थे-
गइयाणं देवाणं चत्तारि सागरीवमाई ठिई पण्णता।
१४. मनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में कुछेक
देवों की चार सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१५. जे देवा किवि सुकिति किद्वियावत्तं
किट्रिप्पमं किटिकंतं किटिवण्णं किहिलेसं किद्विज्झयं किढिसिंगं किढिसिटुं किटिकूडं किठुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१५. जो देव कृष्टि, सुकृप्टि, कृप्टि-यावर्त,
कृप्टिप्रभ, कृष्टियुक्त, कृष्टिवर्ण, कृष्टिलेश्य, कृप्टिध्वज, कृष्टिशृंग, कृप्टिसृप्ट, कृप्टिकूट और कृष्टिउत्तरावतंसक विमान में देवत्व मे उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः चार सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
समवाय-सुतं
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समवाय-४