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जिण- मणपज्जव- मोहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिमा, जत्तिया. सिद्धा, पानोवगया य जे जहि जत्तियाई भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुरिगवरत्तमा तमरोघविप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं य पत्ता।
है, जितने सिद्ध हुए हैं, जिन्होंने प्रायोपगमन अनशन किया है तथा जितने भक्तों/भोजन-समयों का छेदन कर जो उत्तम मुनिवर अन्तकृत / मोक्षगामी हुए हैं, तम और रज से विमुक्त होकर अनुत्तर मिद्धि-पथ को प्राप्त हुए हैं उनका पात्यान है।
एए अण्णे य एवमादी भावा मूलपढमाणुनोगे कहिया आघविज्जंति पण्णविनंति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
ये तथा इस प्रकार के अन्य भावों का मूलप्रथमानुयोग में कथित आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह है वह मूलप्रथमानुयोग ।
सेत्तं मूलपडमाणुनोगे।
४२. ते कि तं गंडियाणुनोगे ?
गंडियाणुप्रोगे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहाकुलगरगंडियानो, तित्वगरगडियानो, गणघरगंडियानो, चरकट्टिगडियानो, दसारगंडियानो, बलदेवगठियायो, वासुदेवगंडियानो, हरिवंसगंटियानो, भद्दवाहगंडियाग्रो, तवोकम्मगंडियानो, चित्तंतरगडियानो, उत्सप्पिणीगंडियानो, अमर-नर-तिरिय-निरय गइ-गमण-विविह-परिपट्टणाणुयोगे. एवमाइयानो गंडियानो मायिजति पविजेति
४२. वह कण्डिकानुयोग क्या है ?
कण्डिकानुयोग अनेकविध प्राप्त है। जैसे किकुलकरकण्डिका, तीर्यकरकण्डिका, गणधरकण्डिका, चक्रवर्तीकण्डिका, दगारकण्डिका, वलदेवकण्डिका, वासुदेवकण्डिका, हरिवंशकण्डिका, भद्रबाहुकण्डिका, तपःकर्मकण्डिका, वित्रतरकण्डिका, उत्सपिणीकण्डिका, अवसर्पिणीकण्डिका, देव, मनुग्य, तिर्यञ्च और नरक गति में गमन तथा विविध परिवर्तन का अनुयोग ग्रादि कंडिकाओं का अान्यान किया गया है, प्रनापन किया गया है, प्ररूपण किया गया
सम्पवय-गुन
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समवाय-द्वादशांग