Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 312
________________ उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा प्रोयंसी तेयंसी बच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदसणा सुरूवा सुहसोला सुहाभिगमा सन्दजणणयण-कंता मोहवला अइवला महाबला अणिया अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्स-माण-महणा साणुक्कोसा प्रमच्छरा अचवला अचंडा मिय - मंजुल - पलाव - हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अन्भुवगय - वच्छला सरप्णा लक्खणवंजण - गुणोववेया माणुम्माण - पमाणपडिपुण्ण -सुजात-सव्वंग-स दरंगा ससिसोमागार-कंतपिय - दसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीरदरिसरणज्जा तालद्ध-प्रोटिवद्धगरुल-केक महाधणुविकडगा महासत्तसागरा दुद्धरा घणुदरा धोरपुरिसा जुद्ध - कित्तिपुरिसा विउलकुल-समुन्भवा महारयणविहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुल-वंस - तिलया अजिया अजियरहा हल-मुसलकणगपाणी संख-चक्कनाय-सत्तिनंदगधरा पवरुज्जल-सुबकंतविमलगोयुभ • तिरोडधारी कुंडलउज्जोइयाणणा पुंडरीय-णयणा एकालि-कंठलइयवच्या सिरिबच्च-सलंछणा-वरजसा सबोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइत-पलंद उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, छायावन्त, कान्त, सोम, मुभग, प्रियदर्शन, सुरूप, सुख, शील, सुखाभिगम, सर्वजन-नयनकान्त, ओघ बल वाले, अति बल वाले, महावल वाले, अनिहत, अपराजित, शत्रु का मर्दन करने वाले, हजारों शत्रुओं के मान को मथने वाले, सानुक्रोश/ दयालु, अमत्सर, अचपल, अचंड/मृदु, मितमंजुल वार्तालाप करने वाले, हंसने वाले, गम्भीर, मधुर, प्रतिपूर्ण सत्यवचन बोलने वाले, अतिथि-वत्सल, भरण्य, लक्षण-व्यञ्जन और गुणों से उपेत, मान-उन्मान और प्रमाण से प्रतिपूर्ण सुजात सर्वाङ्ग सुन्दर अंग वाले, चन्द्रवत् सौम्याकार, कान्त और प्रियदर्शन वाले, अमपंण, प्रकांड दंडनीति वाले, गम्भीर दर्शनीय, तालध्वज वाले तथा उच्छ्रित-गरुडध्वज वाले, बड़े-बड़े धनुप चढ़ाने वाले, महासत्वसागर, दुर्घर, धनुर्धर, धीरपुरुप और युद्ध में कीर्तिपुरुप, विपुलकुल में ममुत्पन्न, महारत्न/वज्र के विघटक, अर्ध भरत के स्वामी, सोम, राजकुलवंश-तिलक, अजित, अजेय रथ बाले, हल-मूगल तथा करणक/ बारा, शंख, चक्र, गदा, शक्ति और नंदक धारी, प्रवर-उज्ज्वल-शुक्लांत और निर्मल कौस्तुम किरीटधारी कुडलों में उद्योतित, पुंडरीक, समवाय-मुक्तं समवाय-प्रकीर्ण

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