Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 322
________________ भविस्संति, उत्तमपुरिसा मझिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, णव पडिसत्तू भविसंति, नव पुत्वभवणामधेज्जा, णव धम्मायरिया, णव णियाणभूमियो, गव रिपयाणकारणा, पागए, एरवए आगमिस्साए भणियवा। दशारमण्डल होंगे। उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष, प्रधानपुरुष यावत् दोदो राम और केशव भाई होंगे। उनके नौ प्रतिशत्रु, पूर्वभव के नौ नाम, नौ धर्माचार्य, नौ निदानभूमियां और नौ निदान-कारण होंगे / ऐरवत में आकर भविष्य में मुक्त होंगे, यह वक्तव्य है। 122. एवं दोसुवि भणियस्वा / . आगमिस्साए 122. इसी प्रकार भविष्य में दोनों [भरत और ऐरवत] में यह वक्तव्य है। 123. इच्चेयं एवमाहिज्जति, तं जहाकुलगरवंसेति य, एवं तित्थगरवंसेति य, चक्कट्टिवंसेति य दासारवसेति य, गणधरवंसेति य, इसिवंसेति य, जतिवंसेति य, मुणिवंसेति य, सुतेति वा, वा, सुतंगेति वा, सुयसमासेति वा, सुयखंधेति वा, समाएति वा संसेति वा। समतमगमक्खायं अज्झयणं 123. इस प्रकार यह ऐसे कहा गया'. है, जैसे किकुलकरवंश, तीर्थङ्करवंश, चक्रवर्ती वंश, दशारवंश, गणधरवंश, ऋपिवंश, यतिवंश, मुनिवंश, श्रुत, श्रुतांग, श्रुतसमास, श्रुतस्कन्ध, समवाय और संस्या / यह समस्त अंग-प्राख्यात अध्ययन -ति मि ... ऐसा मैं कहता हूँ। समवाय-भुतं समवाय-प्रकीर्ण

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