Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सोमंतकंत-विकसंत - चित्त - वर
मालरइय
वच्छा अट्ठसय
विभत्त-लक्खण- पसत्य - सुन्दरविरइयंगमंगा मत्तगयवरद
ललिय - विक्कम - विलसियगई सारय- नवयणियमधुर - गंभीरकोंच-निग्घोस- दुदुभिसरा कडि - सुत्तग- नीलपीय - कोसेयवाससा पवरदित्ततेया नरसीहा नरवई नरिदा नरवसभा मरुयवसभकप्पा प्रभहियं राय - तेयलच्छीए दिप्पमाणा नीलगपीतग - वसणा दुवे- दुवे रामकेसवा भायरो होत्या, तं जहा -
-
१. तिविट्ठू यदुविट्ठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे । पुरिससीहे तह पुरिस
पुंडरीए,
दत्ते नारायणे कण्हे ॥
२. विज भ
सुप य सुदंसणे । श्राणंदे णंदणे पउमे,
रामे यावि पच्छिमे ॥
१०४. एसि णं रगवहं बलदेव-वासु
समवाय-सुत्तं
कमल नयन वाले, एकावली हार कण्ठ शोभित वक्ष वाले, श्रीवत्स चिह्न वाले, यशस्वी, सव ऋतुओं के सुरभि - कुसुमों से सुरचित, प्रलम्ब शोभायमान, कमनीय, विकस्वर, विचित्र वर्ण वाली उत्तम माला से शोभित वक्ष वाले, पृथक्-पृथक् एक सौ ग्राठ लक्षणों से प्रशस्त और सुन्दर अंगोपांग वाले, मत्त गजवरेन्द्र को ललित विक्रम - विलसित जैसी गति वाले शरद ऋतु के नव स्तनित, मधुर, गम्भीर क्रौंच पक्षी के निर्घोष तथा दुंदुभि स्वरवाले, कटिसूत्र तथा नील और पीत कौशेय वस्त्रों से प्रवर- दीप्त तेज वाले, नरसिंह, नरपति, नरेन्द्र, नरवृपभ, मरुदेश के वृषभ तुल्य, प्रभ्यधिक राज्यतेज की लक्ष्मी से देदीप्यमान, नील और पीत वस्त्र वाले दो-दो राम ( बलराम ) और केशव (वासुदेव) भाई थे, जैसे कि - त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुपसिंह, पुरुषपुड डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण [ -- ये नौ वासुदेव थे । ]
२६३
अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म श्री राम [ ये नौ बलदेव थे । ]
१०४. इन नौ बलदेवों और नी वासुदेवों
समवाय- प्रकीर्ण

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