________________
अणुत्तरोववाइमा पंचविहां पण्णता, तं जहाविजय- वेजयंत-जयंत - अपराजिय-सन्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अणुत्तरोववाइया। सेत्तं पंचिदियसंसारसमावण्णजीवरासी।
अनुत्तरोपपातिक देवों के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं । जैसे किविजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित
और सर्वार्थसिद्धिक । ये अनुत्तरोपपातिक देव हैं । यह पंचेन्द्रिय-संसार-समापन्न-जीव
राशि है । ६. नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं।
जैसे किपर्याप्त और अपर्याप्त । इसी प्रकार वैमानिक तक के दण्डकों के लिए यही पतिपाद्य है ।
६. दुविहा गैरइया पण्णता, तं
जहापज्जत्ता य अपज्जत्ता य । एवं दंडनो भणियन्वो जाव वेमाणियत्ति।
७. इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने नरक
और कितना अवगाहन प्रज्ञप्त है ?
७. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए केवइयं प्रोगाहेत्ता केवइया णिरया पण्णत्ता। गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं प्रोगाहेता हेढा चेगंजोयणसहस्सं वज्जेता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ रणं रयणप्पहाए पुढवीए जेरइयाणं तीसं णिरयावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खायं ।
गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक शत-सहस्र/लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण वाहल्य से ऊपर एक हजार योजन का अवगाहन कर एवं नीचे से एक हजार योजन का वर्जन कर, मध्य के एक शतसहस्र/लाख अठत्तर हजारं योजन प्रमाण रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों के तीस शत-सहत्र/लाख नरकावास होते हैं, ऐसा व्याख्यात करता हूँ। वे नरक अन्तर् में वृत्त, वाहर में चतुरस्र / चतुष्कोण और नीचे क्षुरप्र-संस्थानों से संस्थित, अन्धकार से नित्य तमोमय, ग्रह, चन्द्र,
समवाय-प्रकीर्ण
ते णं गरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्प-संठाणसंठिया णिच्चंधयारतमसा-ववगयगह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइस
समयाय-मुत्तं
२५८