Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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विसुद्धा सन्वरयणामया अच्छा सहा लण्हा घट्टा मट्ठा णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पमा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा।
विशुद्ध, सर्वरत्नमय, स्वच्छ, चिकने, घुटे हुये, घिसे हुए, प्रमाजित, निष्पङ्क, निष्कंटक छाया चाले, प्रभा-सहित, मरीचि-युक्त, उद्योतयुक्त, प्रासादीय/आनन्दकर, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप
१७. सोहम्मे रणं मंते ! कप्पे केव-
इया विमाणावासा पण्णता ? गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
१७. भंते ! सौधर्म-देवलोक में कितने
विमानावास प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! बत्तीस शत-सहस्र/ लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं।
१८. एवं ईसाणाइसु अट्ठावीसं वारस
अट्ट चत्तारि-एयाई सयसहस्साई, पण्णासं चत्तालीसं छएयाइं सहस्साई, प्राणए पाणए चत्तारि, प्रारणच्चुए तिणि--एयाणि सयाणि । एवं गाहाहिं भणियन्वं
वत्तीसट्ठावीसा, बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा, छच्चसहस्सा सहस्सारे ॥ प्राणयपाणयकप्पे, चत्तारिसयारणच्चुए तिन्ति । सत्त विमाणसयाई, चउसुवि एएसु कप्पेसु॥ एक्कारसुत्तरं हैट्ठिमेसु, सत्तुत्तरं च मज्झिसए।
१८. इसी प्रकार ईशान-देवलोक आदि
में क्रमश: अट्ठाईस शत-सहस्र / लाख, बारह शत-सहस्र/लाख, आठ शत-सहस्र/लाख, चार शत-सहस्र/ लाख, पचास हजार, चालीस हजार, छह हजार, आनत और प्राणत में चार सौ, प्रारण और अच्युत में तीन सौ [विमानावास] हैं। इमी प्रकार गाथाओं में कहा गया है१. बत्तीस लाख, २. अट्ठाईस लाख, ३. बारह लाख, ४. माठ लाख, ५. चार लाख, ६. पचास हजार, ७. चालीस हजार, ८. छह हजार, ९-१०. चार सौ, ११-१२. तीन सौ। [६-१२]-इन चार कल्पों में सात सौ विमान हैं। अधस्तन [वेयकों में नौ सौ
समवाय-सुत्तं
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समवाय-प्रकीर्ण

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