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३१. प्राहारयसरीरे वं भंते ! कि
संठिए पण्णत्ते? . गोयमा ! समचउरंस-संठाणसंठिए पण्णते।
३१. भंते ! आहारक-शरीर किस
संस्थान से संस्थित प्रज्ञप्त है ? गौतम ! सम-चतुरस्र/चतुष्कोप संस्थान से संस्थित प्रज्ञप्त है।
३२. पाहारयसरीरस्स केमहालिया
सरीरोगाहणा पण्णता?
३२. भंते ! आहारक-शरीर के शरीर
की अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त
गोयमा ! जहणणं देसूणा रयणी उक्कोसेएं पडिपुण्णा रयणी।
३३. तेयासरीरे णं भंते ! कतिविहे
पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णतेएगिदियतेयासरीरे य बेंदियतेयासरीरे य तेंदियतेयासरीरे य चरिदियतेयासरीरे य पंचेंदियतेयासरीरे य।
गौतम ! जघन्यतः कुछ न्यून एक रलि (हाथ) और उत्कृष्टतः
परिपूर्ण रनि । ३३. भंते ! तैजस-शरीर कितने
प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम ! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे कि१. एकेन्द्रिय तेजस-शरीर, २. द्वीन्द्रिय तैजस-शरीर, ३. श्रीन्द्रिय तेजस-शरीर, ४. चतुरिन्द्रिय तैजसशरीर, ५. पञ्चेन्द्रिय तेजस
शरीर। ३४. भंते ! वेयक देव के मारणान्तिक समुद्घात से समवहत तजसशरीर की शरीर-अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त है ? गौतम ! विष्कम्भ-वाहल्य/ चौड़ाई-मोटाई में शरीर-प्रमाणमात्र, आयाम/लम्वाई में नीचे जघन्यतः विद्याधर-श्रेणी तक और उत्कृष्टतः अधोलौकिक गांवों तक, तिरछे में मनुष्य-क्षेत्र तक और अपने-अपने विमान की पताका तक होती है।
३४. गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स
मारणतिय-समुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेती विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीनो, उक्कोसेणं अहे जाव पहोलोइया गामा, तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं, उड्ढं जाव सयाई सयाइं विमाणाई।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-प्रकीर्ण