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नैरयिकों के उपपात का विरहकाल कितना प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः चौवीस मुहूर्त ।
इसी प्रकार उपपात-दण्डक और उद्वर्तन-दण्डक प्रज्ञप्त है।
पुढवीए नेरइया केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता ? गोयमा ! जहण्णरणं एग समयं, उक्कोसेणं चउव्वीस मुहुता। एवं उववायदंडनो भणियन्वो,
उध्वट्टणादंडनो वि। ४६. नेरइया णं भंते ! जातिनाम
निहत्ताउगं कतिहि प्रागरिसेहि पगरेंति ? गोयमा ! सिय एक्केण सिय दोहि सिय तोहि सिय चाहिं सिय पंचहि सिय छहिं सीय सत्तहिं सिय अहिं, नो चेव णं
नवहि । ४७. एवं सेसारिण वि पाउगाणि
जाव वेमाणियत्ति । ४८. काविहे गं मंते ! संघयणे
पण्णते? गोयमा ! छविहे संघयणे पण्णते, तं जहावइरोसमनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयरणे नारायसंघणे अद्धनारायसंघयणे खीलिया संघयणे छेवट्टसंघणणे।
४६. भंते ! नैरयिक जातिनाम-निघत्त
घारी आयुष्क कितने प्राको से प्रवर्तित होता है ? गौतम ! कभी एक [पाकर्प] से, कभी दो मे, कभी तीन से, कभी चार से, कभी पांच से, कभी छह से, कभी सात से और कभी आठ से, किन्तु नौ से कभी नहीं ।
४७. इसी प्रकार शेप-प्रायुप्क
वैमानिक तक ज्ञातव्य हैं।
के
४५. भंते ! संहनन कितने प्रकार का
प्राप्त है ? गौतम ! संहनन छह प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे कि१. वनऋपमनाराच संहनन, २. ऋषभनाराच संहनन, ३. नाराच संहनन, ४. अर्द्धनाराच संहनन, ५. कीलिका संहनन, ६. सेवार्त
संहनन । ४६. भंते ! नरयिक किस संहनन वाले
होते हैं ? गौतम ! छहों संहननों से वे असंहननी हैं। उनके,न अस्थि होता
४६. नेरइया णं भंते! किसंघयणी ?
गोयमा ! छहं संघयणाणं असंघयणी-ऐवट्ठी व
समवाय-सुतं
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समवाय-प्रकीर्ण