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छिरा व हारू, जे पोग्गला अरिणट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणूण्णा अमणामा ते तेसि असंघयणत्ताए परिणमंति।
है, न शिरा और न स्नायु । जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और मन के प्रतिकूल होते हैं, वे उनके असंहनन के रूप में परिणत होते हैं ।
५०. असुरकुमारा रणं भंते ! किसंघ
यणी पण्णता? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी-रणेवट्टी व छिरा रोव पहारू, जे पोग्गला इट्टा कंता पिया सुमा मणुण्णा मणामा ते सि असंघयणताए परिणमंति।
५०. भंते ! असुरकुमार किस संहनन
वाले प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! इन छहों संहननों से वे असंहननी हैं। उनके न अस्थि होता है, न शिरा और न स्नायु । जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय, शुभ, मनोज्ञ और मनोनुकूल होते हैं वे उनके असंहनन के रूप में परिणत होते हैं।
५१. एवं जाव थणियकुमारत्ति ।
५१. इसी प्रकार स्तनितकुमार तक
ज्ञातव्य हैं।
५२. पुढवीकाइया णं भंते ! कि
संघयणी पण्णता? गोयमा ! छेवट्टसंघयणी
५२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव किस
संहनन वाले प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! सेवात संहनन वाले प्रज्ञप्त हैं।
पण्णत्ता ।
५३. एवं जाव संमुच्छिमपंचिदिय
तिरिक्खजोगियत्ति ।
५३. इसी प्रकार सम्मूच्छिम पञ्चेन्द्रिय
तिर्यञ्च योनिक जीवों तक ज्ञातव्य
५४. गम्भवक्कंतिया
यणी ।
विहसंघ
५४. गर्भोपक्रान्तिक जीवों के छह प्रकार
के संहनन होते हैं।
५५. ममुच्छिममणुस्सा एं छेवट्टसंघ-
यणी । समावय-सुत
५५. सम्मच्छिम मनुष्यों के सेवात
संहनन होता है।
समवाय-प्रकीर्ण