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६४. वाऊ पटागसंठाणा पण्णत्ता ।
६४. वायुकायिक जीव पताका-संस्थान
वाले प्रजप्त हैं।
६५. वणप्फई
पण्णत्ता ।
नाणासठाणसंठिया
६५. वनस्पतिकायिक जीव नाना प्रकार
के संस्थान वाले प्राप्त हैं ।
६६. वेइंदिय - तेइंदिय • चरिदिय-
सम्मुच्छ्यिपंचेंदिय - तिरिक्खा हुंडसंठाणा पण्णत्ता।
६६. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और
सम्मूच्छिम - पञ्चेन्द्रिय -तिर्यञ्च हुण्ड-संस्थान वाले प्रत्रप्त हैं।
६७. गम्भवक्कतिया छविहसंठाणा
पण्णत्ता ।
६८. सम्मुच्छिममणस्सा हुंडसंठाण
संठिया पण्णता। ६६. गन्भवतियाणं मणस्साएं
यविहा संठाणा पण्णता।
६७. गर्भोपक्रान्तिक तिर्यञ्च छह प्रकार
के संस्थान वाले प्रजप्त हैं। ६८. सम्मृन्टिम मनुष्य हुण्ड-संस्थान
वाले प्रनप्त हैं। __६६. गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य यह प्रकार .
के संस्थान वाले प्रनप्त हैं।
७०. जहा अमुरकुमारा तहा वारण
मंतरा जोडसिया वेमाणिया।
७१. कविहे णं मंते ! वेए पण्णते?
गोयमा ! तिविहे वेए पण्णते, तं जहाइत्योवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए।
७०. जैसे अमुरकुमार हैं, वैसे ही वान
मंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक हैं। ७१. मंते ! वेद कितने प्रकार के
प्रनप्त हैं? गोतम ! वेद तीन प्रकार के प्राप्त हैं। जैसे कि
स्त्रीवेद, पुरुपवेद और नपुसकवेद । ७२. नत ! क्या नयिक स्त्रीवेद, पुरुप
वैद या नपुमकवेद होते हैं ?
७२. नरइवा पं नंते ! कि इत्यो
चेया पुरिसवेया एसगवेया पणता? गोयमा ! णो इत्यिवेया गो
पुया, पसगवेया पण्णता । ७३. असुरकुमाराणं मंते ! कि इरिय-
येपा पुरिसवेया नपुंमगवेया ?
गौतम ! न तो स्त्रीवेद, न ही
पुम्पवेद; नपुसकवेद प्राप्त हैं। १.मंत ! क्या अमरकुमार स्त्रीवेद, पुरुषवेद या नपुसकवेद होते हैं ?
समवाय-प्रकीर्ण
मनवाय-मुन
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