Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 306
________________ लिंगे, पाम णय गिलिगे कुलिगे वा ॥ ८६. १. एक्को भगदं वोरो, पासी मल्लो य तिहि-तिहि सह नयवंद वासुपुज्जो, छह पुरिससहि नित्तो ॥ २. उग्गा भोगाणं राइष्णाणं, खत्तियाणं च चह सहस्सेह उस भो, सेसा उ सहस्तपरिवारा ॥ च ६०. १. सुमइत्य सिञ्चनत्तेण, मित्रो वासुपुज्जो जिलो चरत्येणं । २. पासी मल्ली विय, श्रमेण सेसा उछट्ठे ॥ ३१. एएसि णं चवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पदमभिक्लादया होत्या, तं जहा १. सेज्जसे बंभदत्ते, सुरिददत्ते च ददत्ते य । तत्तो य धम्मसीहै, सुमिते तह धम्ममित्तं य ॥ पुस्मे पुररान्वन्नू पुण्रानंद, सुगदे जये य विजये य । परमेय सोमदेवे महिददते थ सोमदत्ते व ॥ समदाय-मुत ६=९ या कुलिंग से नहीं । ८६. भगवान वीर अकेले, पार्श्व और मल्ली तीन-तीन सौ पुरुषों के साथ और भगवान् वासुपूज्य छह सां पुरुषों के साथ निष्कान्त / प्रव्रजित हुए थे । भगवान् ऋषभ चार हजार उग्र, भोग, राजन्य और क्षत्रियों के साय निष्क्रान्त हुए थे और शेष तीर्थङ्कर हजार-हजारं परिवारों के साथ | ६०. भगवान सुमति नित्यनक्त / उपवासरहित, वासुपूज्य चतुर्य भक्त / एक उपवास, पार्श्व और नल्ली अष्टम भक्त / तीन उपवास और शेय बीस तीर्थङ्कर छट्टु भक्त / दो उपवास पूर्वक निर्गत हुए । - ९१. इन चोदी तीरों के चौबीस प्रथम भिक्षादाता हुए, जैसे कि ३. १. श्रेयांन २. ब्रह्मदत्त, सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. धर्मसिंह. ६. सुमित्र, ७. वर्ममित्र. =. पुष्प, २. पुनर्वसु, १०. पुण्यनन्द, १९ सुनन्द. १२. जय, १३. विजय. १४. पद्म. १५. सोमदेव, १६. महेन्द्रदन १७. मोमदत्त, १८. पराजित १६. विश्वसेन, २०. समवायः प्रकीर्ण

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