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३५. एवं प्रणुत्तरोववाइया वि ।
३६. एवं कम्मयसरीरं पि भरिणयत्वं ।
३७. कइविहे णं भंते ! श्रोही पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्तेभवपच्चइए य खोवसमिए य । एवं सव्वं श्रोहिपदं भणियत्वं ।
भेदे विसय संठाणे, अभंतर बाहिरे य देसोही । श्रोहिस्स वड्डि-हाणी, पडिवाती चैव श्रपडिवाती ॥
३८. नरइया णं भंते ! कि सीत
वेयणं वेदंति ? उसिणवेयणं वेदंति ?
सीतोसिणवेयणं
वेदंति
गोयमा ! नेरइया सीतं वि वेदणं वेदेति, उसिणं पि वेदणं वेदति णो सोतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं चैव वैयणापदं भणियत्वं ।
सीता य दव्व सारोरी,
साय तह चेयणा सवे दुक्खा ।
श्रनुवगमुवक्कमिया,
निदाए चैव श्रणिदाए ||
समनाय-गुत्तं
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३५. इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों की भी है ।
३६. इसी प्रकार कार्मरण-शरीर भी ज्ञातव्य है ।
३७. भंते! अवधिज्ञान कितने प्रकार प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त हैraप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक | इस प्रकार सम्पूर्ण अवधि-पद ज्ञातव्य है ।
[अवधिज्ञान के द्वार - ] भेद, विषय, संस्थान, आभ्यन्तर, बाह्य, देश, सर्व, वृद्धि, हानि, प्रतिपाती और अप्रतिपाती ।
३८. मंते ! नैरयिक क्या शीत वेदना का वेदन करते हैं ? क्या उष्ण वेदना का वेदन करते हैं ? क्या शीतोष्ण वेदना का वेदना करते हैं ?
गौतम ! नैरयिक शीत वेदना का
भी वेदन करते हैं, उष्ण वेदना का भी वेदन करते हैं, उष्ण वेदना का भी वेदन करते हैं, किन्तु शीतोष्ण वेदना का वेदन नहीं करते । इस प्रकार सम्पूर्ण वेदनापद ज्ञातव्य है ।
[ वेदना के द्वार - ]
शीत, उष्ण, द्रव्य, शारीरिकी, साता, असाता, वेदना, दु:ख, श्राभ्युपगमिकी
श्रीर
अनिदा
वेदना ।
समवाय- प्रकीर्ण