________________
सस्सिरीयत्वा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा ।
१६. केवइया णं नंते ! वेनाणिया
वासा पणत्ता ? गोयमा ! इमोसे गं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरणिज्जानो भूमिभागानो उड्ढे चंदिमसूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारुवाणं वीइवइत्ता बहूणि जोयणारिण बहूणि जोयणसयारिण बहूणि जोयणसहत्साणि बहूणि जोयणसयसहस्साणि बहूओ जोयरणकोडोरो बहूओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाम्रो जोयणकोडाकोडीयो उड्ढं दुरं वीइवइत्ता, एत्य गं वेमाणियाणं देवाणं सोहम्मीसाणसणंकुमार-माहिद-बंग-लंतगसुक्क-सहस्सार -प्राणय • पाणय मारणच्चुएतु गेवेज्जमणुत्तरेसु य चरासीई विमाणावाससयसहस्सा सत्ताणइं सहस्सा तेवीसं च विमाणा नवंतीतिमरसाया ।
कमल, तिलक और रत्नमय अर्द्धचन्द्रों से चित्रित, अन्तर और वाहर से कोमल, स्वर्णमय वालुकानों के प्रस्तट वाले, सुखस्पर्श वाले, सुन्दर रूप वाले, प्रासादीय/आनन्दकर, दर्शनीय,
अभिरूप और प्रतिरूप हैं। १६. भंते ! वैमानिक देवों के प्रावास
कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहु समतल भूमिभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षण और तारारूपों का उल्लंघन कर अनेक योजन, अनेक सौ योजन, अनेक लाख योजन, अनेक कोटि योजन, अनेक कोटा-कोटि योजन ऊपर दूर जाने पर वैमानिक देवों के सौधर्म ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, शुक्र, सहस्रार, प्रानत, प्रारणत और अच्युत देवलोक के तथा नौ ग्रेवेयक और पांच अनुत्तर विमानों के चौरासी लात सतानवे हजार तेईस विमान हैं, ऐसा पाल्यात है।
ते पं विमाणा अच्चिमालिप्पमा भासरामिवण्णाभा अरया नोरया हिम्मता वितिमिरा
ये अचिर्मालि/सूर्य प्रभा वाले, प्रकाशपुज प्रामा वाले, अरज, नीरज, निर्मल, तिमिर-रहित,
समवाय-प्रकीर्ण
ममवाय मुत्त
२६४