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पहा मेद-वसा-पूय-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणु - लेवणतला असुई वीसा परमदुन्भिगंधा काऊअगणि-वण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुहा णिरया असुहायो रणरएसु वेयणायो।
८. एवं सत्तवि भणियन्वानो जं
जासु जुज्जइ ।
पासीयं वत्तीसं, अट्ठावीसं तहेव वीसं च। अट्ठारस सोलसगं, अत्तरमेव बाहल्लं ।।
सूर्य, नक्षत्र और ज्योतिष की प्रभा से शून्य, मेद, चर्वी, मवाद, रुधिर
और मांस के कीचड़ से अनुलिप्त तल वाले, अशुचि, विष्टा-युक्त, अत्यन्त दुर्गन्ध वाले, कापोतअग्निवर्ण की आभा वाले, कर्कशस्पर्श वाले और अत्यधिक असह्य है। वे नरक अशुभ हैं और उन
नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं ।। ८ इसी प्रकार सातों नरकों के बारे में जहां जो उपयुक्त हो, कहना चाहिए। [सप्त] नरकावासों का वाहल्य क्रमशः [एक लाख ] अस्सी हिजार], [एक लाख] बत्तीस [हजार], [एक लाख] अट्ठाईस [हजार], [एक लाख] बीस [हजार], [एक लाख] अठारह [हजार], [एक लाख] सोलह [हजार] और [एक लाख] आठ [हजार योजन है। [नरकावासों की संख्या क्रमशः इस प्रकार हैतीस शत-सहस्र/लाख, पच्चीस शत-सहस्र/लाख, पन्द्रह शत-सहन/ लाख, दस शत-सहस्र/लाख, तीन शत-सहल/लाख, निन्यानवे हजार नौ सौ पंचानवे और पांच अनुत्तर नरकावास।
तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव सयसहस्साई। तिपणेगं पंचूणं, पंचेव अणुत्तरा गरगा॥
६. सत्तमाए णं पुढवीए केवइयं
प्रोगाहेत्ता केवइयर णिरया पण्णता ?
६. सातवीं पृथ्वी में कितने नरक और कितना अवगाहन प्राप्त है ?
समवाय-सुत्तं
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समवाय-प्रकीर्ण