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इच्चे दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा प्राणाए पाराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं विइवयंति । इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं प्रणागए काले अणंता जीवा प्राणाए पाराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं विइवइस्संति ।
वर्तमान काल में परिमित जीव इस द्वादशांग गरिणपिटक की आज्ञा की अाराधना कर चातुरंत संसारकांतार को पार करते हैं। भविष्य काल में अनन्त जीव इस द्वादशांग गरिणपिटक की आज्ञा की आराधना कर चातुरंत संसार
कांतार को पार करेंगे। ४७. यह द्वादशांग गणिपिटक न कभी
था-ऐसा नहीं है, न कभी हैऐसा नहीं है, न कभी होगाऐसा भी नहीं है । वह था, है और होगा-ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य।
४७. दुवालसंगे णं गणिपिडगे रण
कयाइ णासी, ण कयाइ पत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ । मुवि च, भवइ य, भविस्सति यधुवे णितिए सासए अक्खए अन्वए अवट्ठिए णिच्चे।
४८, जैसे पांच अस्तिकाय कभी नहीं थे
-ऐसा नहीं है, कभी नहीं है-~ऐसा नहीं है, कभी नहीं होंगेऐसा भी नहीं है। वे थे, हैं और होंगे--ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य ।
४८. से जहाणामए पंच अस्थिफाया
रए कयाइ ण पासी, रण कयाइ पत्थि, ण कयाइ ण भविस्संति । भुवि च, भवइ य, भविस्संति य । धुवा णितिया सासया अक्खया अव्वया प्रवटिया णिच्चा। एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण कयाइ ण प्रासी, ण कयाइ णस्थि, ण कयाइ रण भविस्सइ । भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य। धुवे णितिए सासए अक्खए अवए अवहिए णिच्चे।
इसी प्रकार द्वादशांग गणिपिटक कभी नहीं था-ऐसा नहीं है, कभी नहीं है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा-ऐसा भी नहीं है । वह था, है और होगा-ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य ।
४६. एत्य रणं दुवालसंगे गणिपिडगे
अणंता भावा अणंता अभावा
४६. इस द्वादशांग गरिणपिटक में अनन्त
भावों, अनन्त अभावों, अनन्त
समवाय-द्वादशांग
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समवाय-सुतं